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अभी तक काई उपाय नहीं मिला | अब आप ही कुछ उपाय बताइये |
जब उन्होंने कहा कि दो चार बातें तो मैं सहन कर लती हूँ उसके बाद सहन नही होती तो हम भी एक आध बात कड़ी कह देते हैं, बस बात और बढ़ जाती है, फिर बमुश्किल सम्हलती है। यहाँ तक कि फिर बाद में दोनों जन बैठकर रो भी लेते हैं कि चार बातें तुमने कहीं, हम ही कुछ सम्हल जाते तो ....... | ऐसा एक दूसरे से बाद में कहते भी हैं | ऐसा नहीं है कि प्रेम नहीं है. लेकिन वह उस समय कहाँ चला जाता है |
सबक भीतर अच्छाइयाँ हैं, लेकिन वे उस समय कहाँ चली जाती हैं जब बुराई अपना पूरा जोर हमारे ऊपर जमा लेती है? बस उस समय ही तो हमें अपने को जीतना है। महाराज ने उससे कहा-आप दो चार बातें तो सहन कर ही लती हैं, अब ऐसा करना जब दो चार बातें हो जायें और आपको भी लगने लग कि अब आगे सहन नहीं होंगीं तब बोलना कि अब आप शान्त हो जाइये, जो कुछ कहना रह गया हो वह बाद में कह लेना, अभी तो अंदर चलते हैं, भोजन करते हैं। इतना भर आप कर लेना ।
वह बोली-महाराज! ऐसा करना है तो कठिन पर आज करके देखेंगे, क्या होता है। __शाम को थका हारा वह व्यक्ति जैसे ही घर आया, जरा-जरा-सी, छोटी-छोटी-सी बात पर शुरू हो गईं कड़वी बातें, चार-पाँच बातें हुईं, गुस्सा बढ़ता जा रहा था पर आज सामने वाला सावधान था, रोज की तरह गाफिल नहीं था, वह बोली सुनो, हाँथ-मुँह धो लो, खाना बन गया है, पहले खाना खा लो, फिर जितना कहना हो, जो भी कहना हो, सब बाद में कह लेना ।
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