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गलती तो हो गई बात तो सही है, दो बज चुके हैं। पर अब वातावरण को हल्का कैसे करें ? इस समय समझाने-बुझाने से काम नहीं चलेगा। उन्होंने सामने रखी थाली उठाई और जीवनसाथी के सिर पर थोड़ा टिका दिया। वे कहने लगीं- अरे - रे! ये क्या कर रहे हैं? मजाक कर रहे हैं । इतनी देर से आये और अब भी मजाक सूझ रहा है ।
कुछ नहीं खाना गर्म कर रहा था, ठण्डा हो गया न खाना । तो क्या गर्म यहाँ होगा?
हाँ अभी तो तुम्हारा माथा ही ज्यादा गर्म हो रहा है, मैंने सोचा सिगड़ी की जगह यहीं गर्म कर लूँ ।
अब बताइये, ऐसे में कोई कैसे गुस्सा कर पायेगा? नहीं कर पायेगा । ये वातावरण को हल्का बनाने के ढंग है। ऐसे समय हम इतना सजग और सावधान रहें कि कैसे भी वातावरण बोझिल न हो पाये। दूसरे की कषाय हमें भी कषाय करने के लिये प्रेरित न कर सके, बल्कि हमारी शान्ति, हमारा क्षमाभाव बना रहे और उस क्षमा और शान्ति से दूसरे को भी संदेश मिले। हमारा प्रयास होना चाहिये कि सामने वाले के क्रोध की इन्टेन्सिटी (तीव्रता ) व ड्यूरेशन (अवधि) कम हो ।
एक बार क्षमासागर जी महाराज के पास एक बहन आई और बोली- महाराज वे आफिस से लौटकर आने पर रोज दो-चार कड़वी बातें कह देते हैं। हम समझते रहे कि दिन भर के थके-हारे होते हैं, गुस्सा आ जाता है तो कह देते हैं इसलिये सहन करते रहे । पर अब हमसे सहन नहीं होता रोज-रोज ये । अब हमको भी गुस्सा आ जाता है । बाद में तो बहुत गिल्टी फील करते हैं हम । पर इसका
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