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करें । जो सरल व शान्त होते हैं, वे विपरीत परिस्थितियों में भी सदा सुखी रहते हैं। एक बेटा खेलता रहता है । वह पेड़ पर पत्थर फेकता है कि उसमें से आम टूटकर गिरें और हम खायें । अचानक क्या होता है कि राजा की सवारी निकलती है और वह पत्थर जाकर के राजा के माथे पर लग जाता है तो सारे लोग दौड़ पड़ते हैं कि अरे, राजा को पत्थर मार दिया और उस लड़के को पकड़ लेते हैं । उसकी माँ भी साथ में थी । वह घबराई कि अब क्या होगा? अब तो गया काम से । घबरा ही जायेगा, कोई भी हो । वह राजा के सामने हाथ जोड़कर खड़ी हो गई । किसने मारा है यह पत्थर ? इस मेरे बेटे के हाथ से लग गया है । तो इसे सजा देनी चाहिये । हाँ, भगवन् ! सजा दीजियेगा | राजा बोले- इतनी आसानी से सजा माँग रही हो? वह बोली- हाँ, आसानी से ही तो सजा माँग रही हूँ, क्योंकि जब-जब भी मेरा बेटा इस पेड़ का पत्थर फेककर मारता है तो पेड़ एक मीठा फल उसे देता है, आज तो उसका पत्थर आपसे टकराया है। मैं देखूँगी कि आज आप उसे क्या देते हैं? जब एक छोटा-सा पेड़ उसके पत्थर फेकने से मीठा फल देता है, तब आपके सिर से टकरानेवाला पत्थर तो कुछ विशेष ही देगा । कहते हैं कि राजा सजा देना भूल गया, राजा उस इनाम दे बैठा । ऐसे ही हम यदि अपने जीवन को बनायें, इन कषायों को जीतने का प्रयास करें तो निश्चित ही हमारा जीवन धार्मिक बन सकता है ।
श्री क्षमासागर जी महाराज ने लिखा है क्रोध आने का सबसे प्रमुख कारण है हमारी अपनी अपेक्षाओं की पूर्ति न होना । यदि हमारी अपेक्षाओं की पूर्ति होती रहती है तो हम बड़े शान्त, बड़े सज्जन दिखाई पड़ते हैं; लेकिन जब हमारी अपेक्षाओं की पूर्ति नहीं होती है, तब हमारी अपनी वास्तविकता सामने आना शुरू हो जाती
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