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________________ ये मेरी च्वाइस (चुनाव) है कि मैं चाहूँ तो गुस्सा करूँ और चाहूँ तो गुस्सा न-करूँ। एक बार एक महात्मा गाँव से जा रहे थे | तो गाँव के लोग बर्तन भर-भर कर मिठाई लेकर आये | महात्मा जी ने कहा-अभी हमें वक्त नहीं है, क्षमा करें; हम आपका आदर स्वीकार करते हैं, पर मिठाइयाँ आप सब खायें और खुश रहें। सभी मिठाइयाँ लौटा दी गई। दूसरे गाँव के लाग महात्मा जी से नाराज थे, वे उन महात्मा जी को नहीं मानते थे। उन्होंने महात्मा जी का आत देखकर गालियाँ देना शुरू कर दी, थाल-के-थाल भर करके गालियाँ दी । महात्मा जी ने कहा-अभी हमारे पास वक्त नहीं है, कृपया क्षमा करें, हम नाराज न हो सकेंगे, हम आपकी गालियाँ ले न सकेंगे | महात्मा जी के शिष्य न कहा-आप कहा तो मैं इन्हें ठीक कर दूँ? महात्मा जी ने कहा-नहीं, हमने जैसे मिठाइयाँ स्वीकार नहीं की थीं, तो वे किसकी हैं? जा लाये थे, उन्हीं की हैं। उसी प्रकार हमने गालियाँ स्वीकार नहीं की तो ये गालियाँ भी जो लाये थे उन्हीं को वापिस हो गईं। हमें इसमें ज्यादा विचार करन की आवश्यकता ही नहीं। क्या हम इतनी आसानी से क्रोध को जीत सकते हैं? जीत सकते हैं, पर हमें थाड़ी देर को बच्चों-जैसा बनना पड़ेगा। अगर बच्चों-जैसा बनकर क्राध करेंगे तो मुश्किल से 4-5 मिनट से ज्यादा नहीं कर पायेंगे | बच्चे आपस में झगड़ा कर लेते हैं, और 2-3 मिनट बाद सब भूलकर फिर से एक-साथ खेलने लगते हैं | शान्तस्वभावी जीव की स्वयं की आत्मा में शान्ति रहती है और जो भी उसके पास पहुँचता है उसकी आत्मा में भी स्वतः शान्ति आ जाती है। इन कषायों को जीतकर अपने जीवन को सरल बनाने का प्रयास (90
SR No.009438
Book TitleRatnatraya Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages802
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size57 MB
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