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________________ है। अपेक्षायें पूरी न हाने पर हमारे भीतर कषायें बढ़ती हैं और धीरे-धीरे हमारे जीवन को नष्ट कर देती हैं। जिसकी जितनी ज्यादा अपेक्षा है, वह तुरन्त ही उतने ज्यादा क्रोध से घिर जायेगा। एक व्यक्ति रास्त में चला जा रहा था। उनका बेटा भी साथ में था | पाँकिट से रूमाल निकालकर मुँह पोंछते समय दस का एक नोट नीचे गिर जाता है | बटा नहीं देख पाता यह वह स्वयं भी नहीं देख पाता। पीछे से आनेवाला एक अन्य व्यक्ति वह नोट उठाकर उन सज्जन को दे देता है। सज्जन उन्हें धन्यवाद कहते हैं और बेटे को गुस्से से देखते हैं -क्यों र! इतना भी नहीं देख सकते थ? इससे अपेक्षा है। जिससे अपेक्षा है, उसके प्रति क्रोध है | जिसस कोई अपेक्षा नहीं थी, उसने उठाकर दे दिया तो उसे धन्यवाद | थोड़ा और आगे बढ़े ! अबकी बार चश्मा पौंछने के लिये फिर रूमाल निकाला, फिर एक नोट गिर गया । अबकी बार बेटा सावधान था। उसन वह नोट उठाकर पिता जी को दे दिया। पिता ने उसे कोई धन्यवाद नहीं दिया। उसे तो यह करना ही चाहिए था। तुम नहीं करोगे तो कौन करेगा? जिसस अपेक्षा है, उसके प्रति अपेक्षा पूरी होने पर कृतज्ञता का भाव भी नहीं है और अपेक्षा पूरी न होने पर तुरन्त क्रोध आ जाता है। हमें दिन भर में यह विचार करना है कि मैं कहाँ – कहाँ अपेक्षायें रखता हूँ, और उनकी पूर्ति न होने पर किस तरह से क्रोध करता हूँ| __ यदि हम वास्तव में क्राध को बुरा समझते हैं और उससे बचना चाहते हैं तो अपनी अपेक्षाओं का कम करना शुरू कर दें | कभी-कभी हम लाग क्षमा भी धारण कर लेते हैं, लेकिन हमारी क्षमा बहुत अलग ढंग की होती है। रास्ते में चले जा रहे हैं, किसी का धक्का लग (92
SR No.009438
Book TitleRatnatraya Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages802
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size57 MB
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