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मनुष्य का आभूषण रूप है, रूप का आभूषण गुण है, गुण का आभूषण ज्ञान है और ज्ञान का आभूषण क्षमा है । ऐसे क्षमाधर्म को अपने जीवन में अवश्य ही धारण करना चाहिए ।
क्षमा ही मन को शान्त व स्थिर रखने में समर्थ है। क्रोध को रखते हुये मन स्थिर नहीं रह सकता। मन की स्थिरता तो सभी चाहते हैं । मन को शान्त रखने का अच्छा उपाय है क्षमा करना । क्षमाशील व्यक्ति ही सदा सुखी रहते हैं ।
एक घर में एक साँप था। जब उस घर में बच्चे को दूध पीने के लिये कटोरा भर दिया जाता तो वह साँप आये और उस दूध को पी ले । बच्चा उस साँप को हाथ से मारता जाये, मगर उस साँप ने क्षमा व्रत लिया था, सो वह खूब आराम से रहे । एक दिन दूसरे साँप ने देखा कि यह तो दूध पी आया है और मस्त है । वह बोला - यार ! तुम तो बड़े मस्त हो, मुख में दूध लगा है, आप कहाँ धावा मारा करते हो ? 'हम तो बच्चे के पास से दूध पी आते हैं । हमें बता दो, हम भी पीलिया करेंगे । 'तुम नहीं पी सकते हो ।' क्यों ? बोला- 'दूध वही पी सकता है, जिसमें क्षमा हो । वह बच्चा थप्पड़ मारता है । जिसको थप्पड़ सहने की शक्ति हो, वही दूध पी सकता है।' अरे! तो हम भी सह लेंगे । कहा- नहीं सह सकते हो। द्वितीय साँप ने संकल्प लिया कि अच्छा! तो लो 100 थप्पड़ तक हम जरा भी क्रोध नहीं करेंगे, और वह दूध पीने गया । बच्चा थप्पड़ मारे, जब 80,90,95,97,99 और 100 थप्पड़ हो गये, तब तक कुछ न कहा। पर जब 101 - वाँ थप्पड़ बच्च ने मारा तो उसने फुंकार मारी, बच्चा डरकर चिल्ला पड़ा। घर के लोग दौड़े, साँप को देखा और मार डाला । तो सुख और शान्तिपूर्वक अपना जीवन चलाने के लिये क्षमा का गुण होना चाहिये | जो क्षमाशील होते हैं, वे ही सुखी और शान्त रहते हैं ।
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