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आत्मा में लीनता करते हुए बाह्य (बाहर के) तप सहज होते हैं-वस्तुतः निर्जरा तो आत्मा अपने स्वभाव में रहे, ज्ञाता-द्रष्टा भाव में रहे, सर्व बाह्य क्रिया, प्रवृत्ति, कार्य, कर्म से परे अक्रिय हो जाए उसी से है। महामुनि एकान्त में, जंगल में, कन्दरा, गुफा में, खंडहर में, यक्षायतन में जा खड़े आत्मध्यान में लीन हो जाते हैं। तब एक दिन से लगाकर, कभी-कितने, कभी कितने दिन, चार माह, छः माह निकल गए, कहा-महामुनि महावीर ने ऐसे-ऐसे अनशन तप किए। वस्तुतः वे आत्मध्यान में थे, बाहर में वह अनशन उनका सहज होने वाला तप हमें दिखा। उन्हें आत्मा दिखी, ध्यान आत्मा में हो तब बाह्य में चाहे शीत हो, उष्ण हो, उनका ध्यान उधर नहीं जाता। शरीर के प्रति आसक्ति को तोड़ने हेतु शीत या उष्ण आतापना है। वैसे ही पूर्व कर्म को शीघ्र उदय में लाने हेतु विपरीत स्थान या विपरीत व्यक्तियों के बीच जाते हैं। वहां वे कष्ट उपसर्ग दें और साधक उससे लेशमात्र भी विचलित हुए बिना मात्र आत्मा में लीन रहता है, तब निर्जरा। बाह्य में दिखा प्रतिसंलीनता का तप। वस्तुतः वे आत्मध्यान में रहते हैं। कर्म उदय में आया, फल दे दिया, वे आर्त्त-दुखी हुए ही नहीं, उनका ध्यान उपसर्ग, उपसर्गदाता, कष्टानुभूति में गया ही नहीं, कर्म निर्जरा हुई।
___ कायोत्सर्ग से निर्जरा-ऊपर विस्तार से गज सुकुमाल अणगार ने ऐसा ही किया, वह समझा। 1141 व्यक्तियों की हत्या से बंधे तीव्रतम असाता वेदनीय कर्म की निर्जरा उसी राजगृही नगरी के चौराहे-चौराहे पर ध्यानस्थ, स्वरूपस्थ, आत्मस्थ रहे, अर्जुनमाली अणगार ने की। जिस नगरी के मनुष्यों को मारा वहीं जा ध्यान लगाना, विपरीततम स्थान था। बाह्य में दिखा-प्रतिसंलीनता का तप कर रहे हैं। वे काया का उत्सर्ग कर आत्मा में लीन थे। उत्सर्ग अर्थात् कष्ट, कष्टदाता, शरीर पर लेशमात्र ध्यान नहीं है। उसे कायोत्सर्ग कहा। उससे निर्जरा है।
स्वाध्याय से निर्जरा कैसे? जिस समय सद्गुरू भगवन्त से आत्मतत्व-अनात्मत्व का भेद समझ रहे हों, संशय दूरकर पक्का करने हेतु प्रश्न पूछ रहे हों, जिस शरीरादि से भिन्न आत्मत्व को जाना, उसी-उसी का स्मरण-रमणता हो रही हो, उसी को देख रहे हों तब निर्जरा होती है। उस काल में जिस कर्म का उदय है उसी समय में ऐसे तत्वज्ञान, आत्मज्ञान में तल्लीन होने रूप स्वाध्याय हो रहा है तब वह कर्म निर्जर जाता है। जब आत्मा स्वयं के ही परमगुण आनन्द, अपूर्व आनन्द में, स्वरूप में रमणता कर, उस समय सर्वविकार, सर्व संकल्प-विकल्प, सर्वविचार थम जाते हैं, निर्विकार, निर्विकल्प, निर्विचार हो जाते
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