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________________ प्रस्तावना श्री भास्कर जैन, जैन नगर, मेरठ ने बार-बार मुझे कहा कि आपका मोक्ष मार्ग प्रवचन- ग्रंथ तो विशाल- विस्तृत, गूढ ज्ञान देने वाला है। नई पीढ़ी उसे पढ़कर पचा नहीं पाएगी। अतः जैन कुलों में जन्मे और जो भगवान् महावीर के धर्म-दर्शन की उत्कृष्टता-‍ - सर्वोपरिता से अपरिचित अजैन, दोनों के उपयोग के लिए, सरल शब्दों में एक लघु ग्रंथ लिखें। ये इस मत के पक्के हैं कि भगवान् महावीर पूरे विश्व को ज्ञान प्रकाश देने वाले हैं। (लाइट ऑफ यूनीवर्स हैं) परन्तु अनुयायियों ने उन्हें विश्व के मानव समाज के सम्मुख प्रस्तुत ही नहीं किया। मुझे लगा, ऐसा करने हेतु ये कृत-संकल्प हैं, भिड़े हुए हैं। मुझे भी लगता है कि ऐसे सर्वज्ञ - सर्वदर्शी की वाणी को आचार्यों ने आचार-मर्यादाओं तक सीमित रख दिया। या वाह्य उपासना पद्धतियों, तदर्थ भिन्न-भिन्न वेषों के माध्यम से कई मत पंथ-सम्प्रदायों में बंटकर अपने-अपने बाड़े में बांध दिया। फिर कैसे उनके अकाट्य, प्रामाणिक, वैज्ञानिक अवधारणों का ज्ञान विश्व को हो पाता !! जब भी वैज्ञानिक नई नई खोजें करते हैं, तब हम कहते हैं, यह तो महावीर के आगमों में आया हुआ है। पहले शोध कर करवाकर प्रकट किया क्या ? नहीं। श्री भास्कर जैन ने चाहा कि जैनत्व के मूलभूत सिद्धान्त, आत्मा, परमात्मा, लोक के संबंध में क्या है, सार-संक्षेप में दे दें। उसी प्रेरणा विनति से यह पुस्तिका मेरठ में ही लिखी। सरल शब्दावली, छोटे वाक्यों में, सरस शैली में, जिज्ञासा शान्त करने योग्य लेखन हो, ऐसा इन्होंने चाहा । प्रयास करते हुए भी मैं वैसा तो नहीं कर पाया। अतः इनके कथन पर एक शब्दकोष इसके अन्त में दिया है। इसमें आए तत्वों को पढ़ते-पढ़ते भी शास्त्रीय शब्दावली समझ में आ जाएगी। न समझ पाएं तो शब्दकोष देखें। कर पाएंगे। यदि जैनत्व सहयोगियों का श्रम व्यय सार्थक हो जाएगा। 'आमुख' लेखक की सद्भावना भी इस ग्रंथ की सार्थकता में जुड़ गई है। उदयमुन लघु ग्रंथ आपके हाथ में पहुंच रहा है। मूल्यांकन तो आप ही का मूल स्वरूप समझ में आ गया तो यह श्रम और सभी (5)
SR No.009401
Book TitleJainattva Kya Hai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaymuni
PublisherKalpvruksha
Publication Year2012
Total Pages84
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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