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फिर हमारा संसार कैसे चलेगा? घर-गृहस्थी कैसे चलेगी?
संसार का अर्थ है-चतुर्गतिरूप संसार। क्या ऐसा संसार चलाकर, ऐसी घर-गृहस्थी चलाकर निरन्तर चतुर्गतिरूप संसार बढ़ाना है? सम्यक्त्वी नहीं बढ़ाना चाहता है। घर-गृहस्थी, सांसारिक कार्य भी करता है परन्तु उसमें कर्तृत्व बुद्धि, अहंबुद्धि, मम-बुद्धि नहीं रहती।
आत्मसाधक की गृहस्थी अच्छी चलेगी-आत्मा के आनंद में निरन्तर वृद्धि करने रूप आत्म-साधना से, आत्म-तुष्टि, संतोष, शान्ति तनाव-चिन्ता-क्लेश-परिताप से परे रहने वाले का घर-व्यापारादि भी शान्त-दत्त-चित्त होने से, सम्यक, निर्णायक बुद्धि से, एकाग्रता से अच्छे चलेंगे। वह वे कार्य शीघ्र दफनाकर अपने कार्य, आत्मशुद्धि, आत्म-परिष्कार में जुट जाएगा, चौबीसों घंटों चक्की में नहीं पिसता रहेगा, धाणी-का-बैल नहीं बनेगा। निरर्थक कार्यों में, गप्पों में, बुद्धिभ्रष्टकर्ता 'बुद्ध डिब्बे' के चक्कर में समय नहीं गंवाएगा, बचाकर सामायिक-स्वाध्याय, ध्यान, चिन्तन, मनन में, आत्मानंद में लीन होगा। बाह्य में-सरलता, भद्रिकता, ऋजुता, नम्रता, कोमलता, दयालुता, सहनशीलता, स्नेह, सौहार्द्रय, सामंजस्य, परस्पर-प्रेम, सर्वजीवों के प्रति मंगलभाव-कल्याणी भावना आदि मानवीय गुण भी खिलते जाएंगे। भीतर भी आनन्द बाहर भी आनन्द। दुख, दारिद्रय, रोग, शोक आ गए, मानेगा-मेरे पूर्व कर्म का फल है, आर्त हुए बिना, दुखी हुए बिना, समत्व साधनाभाव से निर्जरित, निष्फल कर देगा, नए कर्म, हाय-विलाप करके, नहीं बंधेगे। बाह्य में अधिक अत्यधिक सुख-सुविधाएं आएं, पुण्य का कचरा है, कचरे में लोटपोट नहीं करेगा, निर्लिप्त, उदासीन, निस्पृह, अगृद्ध, अनासक्त रहेगा।
आश्रव नहीं, संवर-दुष्फल मेरे दोष से आया, मानो-उक्त अन्तिम पंक्तियों में आया-पूर्वकर्मोदय से घर-गृहस्थी, सम्यक्त्वी तथा व्रती श्रावक (श्राविका) को सुख के कारण भी मिलेंगे, दुख के कारण भी मिलेंगे। मिथ्यात्वी, अज्ञानी दोनों में नए कर्मों का आश्रव करेगा। सुख में मजा ले, दुख में दुखी हो तो आश्रव। सम्यक्त्वी-ज्ञानी क्या करेगा? दोनों में सम। कोई विषम भाव नहीं। कर्म बांधे थे, मैंने जैसा पूर्व में, पूर्व भव में, पूर्व भवों भव में बांधा, उदय में आया, मेरा ही दोष है, दुष्फल मैंने ही तय किया था। अन्य किसी का दोष नहीं है। किसी भी व्यक्ति को, कर्म को दोष न दे, अपना दोष मानकर, "चुप्पी" साधकर मुक्त हो जाएगा। दूसरे को दोषी मान द्वेष करना, क्रोधादि करना, आर्त्त-दुखी होना
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