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________________ राग मीठा जहर है, द्वेष खारा-कड़वा जहर है। कर्म बंध तो दोनों में होता है। राग पाप का भान नहीं आता। जो पारिवारिक मानदंडों में पवित्र, मंगल कहा हो, कैसे पाप है, रुचता नहीं परन्तु उसी राग के पीछे द्वेष, वैर-वैमनस्य-विरोध-मतभेद-घृणा-तिरस्कार-ईर्ष्या, बैर की गांठे, क्लेश, कलह, संघर्ष, युद्ध-महायुद्ध, हिंसा का उग्रतम रूप। ऐसे राग-द्वेष को भगवान् महावीर पाप कहते हैं। कर्मरूपी पेड़ के मूल या बीज हैं। यह राग-द्वेष अज्ञान से होता है। अज्ञान क्या? इन सब परायों को अपना जानना। उसी से मोह, जो भयंकर कर्म बंध का कारण गिना है। माया पाप-यदि राग है तो उसकी पूर्ति धन, वैभव, ऐश्वर्य, पद से होती है। वह पाने हेतु छल, प्रपंच, मायाचारी, गूढमाया-षड़यन्त्र आदि करना-माया है। उससे उस लोभ की, धन की तृष्णा की पूर्ति होती है। उसी से रति सुख, इन्द्रिय सुख होता है। अतः राग में माया और लोभ कषाय आ गया है। द्वेष है तो उसके प्रति क्रोध आता है। मान-भंग हो अहंकार पर चोट लगे तो क्रोध की ज्वाला निकलती है। ___कलह, निंदा, चुगली, रति-अरति-धन-सम्पत्ति, कार्य के बंटवारे में क्लेश होता है, वही कलह, वाद-विवाद, संघर्ष, वैर-वैमनस्य, युद्ध, वाकयुद्ध आ जाता है। उसी में एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगाए जाते हैं, एक-दूसरे को नीचे गिराया जाता है, पछाड़ा, जीता जाता है। स्वयं ऊंचा बताने, अन्य को, अन्य की दृष्टि में नीचा, नीच दिखाने हेतु चुगली, निंदा-बुराई होती है। उसी हेतु षडयंत्र, सांठगांठ, छल-प्रपंच होते हैं उसमें कपटपूर्वक झूठ बोलते हैं। इन सब हथकंडों से पद-प्रतिष्ठा ऊंची कर, धन-सम्पदा-ऐश्वर्य बढ़ाकर इन्द्रिय-विषयों की अनुकूलता जुटाई जाती है, उसे भोगना, रुचि लेना, रुचिकर लगना रति और प्रतिकूल हों तो अरुचिकर लगता है, वह अरति है। ऐसे सत्रह पाप हैं। तीन शल्य (कांटे)-अन्तिम, इन सब प्यादों को सक्रिय रखने वाला, मिथ्या दर्शन शल्य है। इसमें तीन शल्य आते हैं। माया शल्य अर्थात् ऐसा कांटा कि मोक्ष मार्ग पर एक कदम भी नहीं चल सकता, पांव भी नहीं रख सकता। माया की भयंकरता ऊपर समझाई। दूसरा कांटा-निदान (नियाणा) है। यदि अज्ञानता में, सम्यक् ज्ञान, सम्यक् दर्शन के बिना, देखा-देखी, शरीर-सुख, संसार-लाभ से संयम और तप की आराधना करे तब भी शुभ भाव से पुण्य बंध होता है। यदि वह किसी सांसारिक-सुख में आकर्षित, भ्रमित हो, आ जाए, हो जाए और यह इच्छा 152
SR No.009401
Book TitleJainattva Kya Hai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaymuni
PublisherKalpvruksha
Publication Year2012
Total Pages84
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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