________________
के लिए लगा रहे हैं, अशुभ, पाप बंध होगा। वही यदि मूक पशु-पक्षियों, छोटे जीवों, असहाय, दीन-दुखी मनुष्यों के लिए लगाते हैं, उन्हें (शरीर) सुख मिलता है, आप पाप के स्थान पर पुण्य बंध करेंगे। पाप का फल तिर्यंच गति, भयंकरतम पाप का फल नरक गति में जाकर (दुखी होंगे)। पुण्य के फल से ही वर्तमान का मनुष्य भव
और बुद्धि, इतनी सुख-सुविधा। अधिक पुण्य तो देव गति, इच्छा करते ही पूर्ति हो जाए ऐसा सुख।
पुण्य कितने प्रकार से-ऐसे शुभ भाव और उनकी पूर्ति हेतु कार्य या प्रवृत्ति भिन्न-भिन्न प्रकार के हो सकते हैं। मूल में मानें-दूसरे जीव के शरीर की साता, सुख। भूखा है, भोजन देना, प्यासा है-पानी पिलाना, ठंड से ठिठुर रहा है, वस्त्र देना, विश्राम-विश्रान्ति हेतु स्थान देना, रुग्ण है-उपचार करना-करवाना, स्व-शरीर से सेवा करना, अन्य सुख देने वाली वस्तुएं सुविधाएं देना, धन-समय नहीं है तो शरीर से सेवा करना, वह भी नहीं है तो मात्र मन से उसके प्रति शुभ भाव करना, हितचिंतन करना, इसका भला, सब जीवों का भला हो, वचन से उसे सांत्वना, ढांढ़स, धैर्य बंधाना, साता जन्य पवित्र वचन बोलना। अन्तिम है, मानवीय गुण है, भद्र पुरुष-स्त्री है, गुणवान है, आत्मगुणों का धारक ज्ञानी है, धर्ममय जीवन जीता है, उसे नमस्कार करना, ऐसा करके शुभ भावों से पुण्य होता है, सुखपूर्वक भोगा जाता है।
प्रतिफल की कामनारहित पुण्य है अन्यथा पाप विशेष-उक्त सभी कार्य, निस्वार्थ भाव से, बिना किसी मोह-ममता के, बिना किसी प्रतिफल, प्रतिदान, सुख की प्राप्ति हो मुझे, ऐसे भावों से रहित हो। उससे या उस कारण किसी से पुनः सुख मिलेगा, ऐसी लेशमात्र भी कामना न रहे। कोई प्रशस्ति गान, अभिनन्दन, वाहवाही, जय-जयकार-प्रशंसा मिले-ऐसा भाव न आए। उस दान, सेवा आदि को गुप्त रखें। प्रकट करे, नाम, यश (नाम यह-घोषणा) चाहे, हो तो मान, लोभ कषाय, पाप बंध करेगा। "नेकी कर कुएं में डाल" भला कर भूल जा। बदला नहीं मांगे। लाभ मिला वह उस उपकारी का उपकार मानें। उपकारी भूल जाए।
(5) पाप तत्व-पुण्य-पाप की अपनी-अपनी परिभाषा नहीं होती। पाप तो पाप है, कर्ता अपने तर्क से, बहाने करके, अपने सांचे के अनुसार मानो, उसे पाप नहीं मानता है, तो वह पाप नहीं है, ऐसा नहीं कहेंगे। दृष्टांत : अपने नन्हें-मुन्हों से
434