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गई हरी पर्याय का चला जाना, पीली पर्याय हो जाना, हरी पर्याय का नाश, शास्त्रीय शब्द, व्यय हो गया, तभी, तत्क्षण पीली पर्याय का जन्म हुआ। द्रव्य हर अवस्था में है। इसे कहा-उत्पाद, व्यय, ध्रुवता।
द्रव्य है, तो उसमें गुण हैं, उसी में पर्याय प्रति समय नई-नई हो रही हैं, सो त्रिपदी हुई-द्रव्य, गुण, पर्याय।
षट्दर्शन छः द्रव्यों के संदर्भ से भगवान महावीर के दर्शन और भारत के मुख्य अन्य दर्शनों-दार्शनिकों को समझना है।
(1) वैदिक दर्शन (वेदान्त) इसमें माना जाता है कि एक सर्वशक्तिमान ईश्वर (परमेश्वर, परमात्मा) है जिसमें ऐसी शक्ति है कि वह इस लोक (सृष्टि) की रचना करे, चलाए, नष्ट करे। फिर रचे, चलाए, नष्ट करे। सदा काल से वह ऐसा करता-करवाता आ रहा है, सदा ऐसा करता रहेगा। शास्त्रीय शब्द लें-वह ईश्वर इस सृष्टि का कर्ता, धर्ता, हर्ता है। उसके तीन प्रतिनिधि हैं। ब्रह्मा रचना करता है, विष्णु पोषण करता है और शिव संहार करता है।
अन्तर समझें-भगवान ने कहा-लोक शाश्वत है, छहों द्रव्य शाश्वत हैं। मैं भी। मुख्य दो गिनें-पृथ्वी, सूर्य, चन्द्र, तारे आदि को पुद्गल गिनें। इनमें बसे को जीव गिनें दोनों को संख्या में अनन्त कहा। जीव कुल कितने? एक-एक गिनते-गिनते इतनी संख्या में कि अन्त ही नहीं आए। सभी अनादि से हैं, अनन्त काल तक रहेंगे। यदि इन्हें बनाने वाला ईश्वर है, तो प्रश्न खड़ा होगा, उसे किसी ने बनाया होगा। यदि कहें कि वह अनादि से है, अनन्त काल तक रहेगा तो महावीर ने कहा मैं भी अनादि से हूं, अनन्त काल तक रहूंगा। एक ईश्वर ऐसा हो सकता है तो अनन्त जीव ऐसे हो सकते हैं, महावीर ने जाना-देखा-अनादि से हैं, अनन्त काल तक रहेंगे।
यदि उसके पास ऐसी शक्ति है तो महावीर कहते हैं, मुझमें भी है। मैं भी रागादि विकार भाव करके कर्म बांधता हूं, उनके फलस्वरूप मेरी सृष्टि की रचना हुई। मैं ही उसका पोषण करता हूं। मैं ही चाहूं तो उस चतुर्गतिरूप सृष्टि (संसार) का नाश कर शिव रूप, शुद्ध आत्मा, परमात्मा हो जाता हूं। मैं ही मेरा ब्रह्मा, मैं ही मेरा विष्णु, मैं ही मेरा शिव, अन्य कोई नहीं।
स्व-संचालित सृष्टि-महावीर का मत है, सब व्यवस्थित रूप से
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