SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 15
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जीव और अजीव को, आत्मा और शरीर को, चेतन और अचेतन पुद्गल को एक ही मानना मिथ्यात्व और इनको पृथक-पृथक मानना सम्यक्त्व है। किसे कहा जीवाजीव का भेद विज्ञान? द्रव्य, गुण, पर्यायों का समूह है- जीव एक द्रव्य है। जीव एक तत्व भी है। प्रथम जीव द्रव्य से अन्य द्रव्यों की तुलना करके भिन्नता, अन्तर, भेद समझें । द्रव्य किसे कहें? गुण और पर्यायों के समूह को द्रव्य कहा गुण, विलक्षणता, विशेषता, लक्षण एकार्थक मानो कई द्रव्य हैं। एक द्रव्य में कई अनन्त गुण होते हैं। उदाहरण - मिश्री में मिठास, अग्नि में उष्णता, पानी में शीतलता, मिर्ची में चरकास, नमक में खारास इनके अपने-अपने गुण हैं। मिश्री में कड़ापन, हैं। मिश्री में कड़ापन, सफेदी, डलीरूप, मिठास आदि गुण हैं। इन गुणों के समूहरूप मिश्री एक द्रव्य है। गुण-गुणी में एकता है। समझने के लिए कहें यह गुण है, यह द्रव्य है। किसी भी द्रव्य के गुण सदा एक जैसे नहीं रहते। प्रतिपल, क्षण, प्रति समय बदलते रहते हैं। जो गुण का स्वरूप बदला, उसे पर्याय कहते हैं। - मिट्टी एक द्रव्य है। उसको छान-पानी के साथ गूंधकर लोंदा बनाया। उसे अब लोंदा कहा। मिट्टी का पर्याय है। फिर उसे कुम्भकार चाक पर रखकर डंडा घुमाता है, हटाता है, मिट्टी पर उंगलियाँ जमाता है, लोंदे ने थोड़ा आकार बदला, फिर कुछ घड़े जैसा आकार बना, फिर सुघड़ आकार बना, दिखा घड़ा है। डोरे से काटकर अलग किया। सुखाया थोड़ा फिर थाप थूपकर देखा एक सुघड़ घड़ा स्पष्ट दिखा। लोंदे रूप पर्याय नष्ट हुआ, घड़े रूप नए पर्याय ने जन्म लिया। मिट्टी रूप सबमें है, वह ध्रुव द्रव्य मिट्टी, उसमें उत्पाद व्यय निरन्तर होता दिखा। छः द्रव्योंमय लोक है : छः द्रव्यों का स्वरूप ऐसे सदा-सदा के लिए ध्रुव रहने वाले छः द्रव्य हैं। (1) धर्मास्तिकाय = जीव और पुद्गल को गमन करने में सहायता देने वाला। गमन (जाना-आना) की शक्ति तो इन दोनों द्रव्यों में ही है, धर्मास्तिकाय वह शक्ति नहीं देता, चलाता नहीं पर उनके चलने में निमित्त बनता है। मछली पानी में अपनी सहज-स्वाभाविक शक्ति से तैरती है परन्तु पानी के निमित्त मिलने पर ही (2) अधर्मास्तिकाय जीव और पुद्गल रुकना चाहें तो उसमें सहायक बनता है। राहगीर चलते-चलते, पेड़ आ गया, छाया दिखी, रुक गया, रुकने में हाथ ऊपर उठाया, उसे रोकना है, " 13 =
SR No.009401
Book TitleJainattva Kya Hai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaymuni
PublisherKalpvruksha
Publication Year2012
Total Pages84
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy