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पूर्ति के लिए, इन्द्रिय विषयों के लिए जुड़ा धन-वैभव मेरा है, इन्द्रिय-विषयों की पूर्ति को ही एकमात्र लक्ष्य माने, इन्द्रिय-विषयों में ही सुख माने, इनकी पूर्ति ही धर्म माने, इसे ही जीवन माने, परिवार का कार्य करना कर्त्तव्य-दायित्व-उत्तरदायित्वधर्म माने तो वह मिथ्यात्व है। यही अनन्त कर्म का बंध कराने वाला, अनन्त जन्म-मरण के अनन्त दुखों वाला, अनन्तानुबंधी कर्म का कारण है।
कर्तव्य, दायित्व, उत्तरदायित्व, अनिवार्य, अपरिहार्य, उपाय, धर्म आदि को समानार्थक मानें। ऐसा मानना मोह से होता है। इस मोहराग में राग-रति-आसक्ति-विषयेच्छा-भोगेच्छा आदि आभ्यांतर में जुड़े हुए हैं। उसी से समस्त आरंभ-समारंभ में जाता है। उसमें हिंसादि कई पापों का आ जाना होता है। उसी में रुचि पड़ जाती है। ये सभी वीतरागवाणी श्रवण में बाधक बन जाते हैं। उसे हटाए बिना वाणी-श्रवण भी नहीं होता। फिर तत्वों के सम्यक् स्वरूप को भी नहीं समझ पाता, उसी से तो मिथ्यात्व पनपता है और अनन्त कर्मबंध हो जाता है।
वस्तुतः ये कभी मेरे हुए नहीं, होते नहीं, होंगे नहीं। जिसे प्राणों से अधिक मान रखा था, उसका या मेरा यह शरीर छूटा कि सब विस्मृत। पूर्व में ऐसे कितने प्रियजन, परमप्रिय से जुड़े, क्या आज याद है? नहीं है। तो ये भी ऐसे ही भूल-भुला जाएंगे। ये सभी मिलते-बिछुड़ते हैं। इन्हें संयोगी कहा है। जिसका संयोग होता है, उसका वियोग निश्चित है, न जाने किस क्षण हो जाए। ऐसे संयोगी को, क्षणभंगुर को, अनित्य को अपना मानना और अपने आपको, आत्मा को भूले बैठे रहना मिथ्यात्व है। यह नकारात्मक कथन से हुआ।
सकारात्मक क्या है? मैं इन सब संयोगियों से भिन्न आत्मा हूं। बाह्य में परिचय करना-रखना हो तो इन पंच परमेष्टियों से करना-रखना। आभ्यांतर में अपने आपसे परिचय करना, अपने आपको पहचानना। जब तक स्वयं, स्वयं को न जाने-पहचाने और बाह्य शरीरादि समस्त को अपना जाने-पहचाने तब तक मिथ्यात्व है। जब यह जाने-माने कि मैं शरीरादि समस्त संयोगियों से पूर्णतः भिन्न आत्मा हूं, तब मिथ्यात्व से सम्यक्त्व में आ गया, ऐसा कहेंगे, अज्ञान से ज्ञान में आ गया। इसे सम्यक् ज्ञान, सम्यक् दर्शन भी कहते हैं।
जिसका वस्तुतः जैसा स्वरूप है, वैसा मानना-जानना वही सम्यक् है। उसी से सम्यक्त्व शब्द बना है। आत्मा को शरीर रूप मानना, शरीर को आत्मारूप-स्वरूप-मेरा रूप मानना, दोनों को एकमेक, एक ही मानना मिथ्यात्व है। दोनों पूर्णतः भिन्न-भिन्न हैं ऐसा मानना सम्यक्त्व है।
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