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________________ सिद्ध परमात्मा-अनन्त ज्ञान, अनन्त दर्शन, अनन्त सुख, अनन्त वीर्य, अटल अवगाहना, अमूर्तिक, अगुरुलघुत्व और क्षायिक सम्यक्त्व ऐसे आठ गुणों के धारक होते हैं। अनन्त काल तक बाधारहित (अव्याबाध) सुख में लीन रहते हैं। शरीर से रहित हो जाने से वे शुद्ध आत्मा अरूपी-अमूर्तिक कहलाते हैं, अब अवगाहना भी एकसी रहेगी। गुणों में न कमी होगी, न वृद्धि। अनन्त आत्मिक गुण प्रकट हो गए हैं। आचार्य भगवन्त-तीर्थंकर के परिनिर्वाण पर तीर्थ या शासन के संचालक मार्गदर्शक आचार्य होते हैं। वे पांच महाव्रत, पांच समिति, तीन गुप्ति के पालक, चारों कषायों के विजेता, पांच इन्द्रियों के विजेता, पंचाचार के पालन करने-कराने वाले और नौ वाड़ सहित ब्रह्मचर्य के पालक, ऐसे छत्तीस गुणों के धारक हैं सर्वतः गुप्त महर्षि, उत्कृष्ट उत्कट ज्ञानवान् (आगम ज्ञाता) प्रबुद्ध और आरंभ से सर्वतः विरत हैं। अन्तिम समाधि की अभिलाषा से परिव्रजन (विहरण) करते हैं। मोक्ष मार्ग के पथिक और प्रदर्शक होते हैं। उपाध्याय भगवंत-11 अंग, 12 उपांग चरण सत्तरी, करण सत्तरी, ऐसे पच्चीस गुणों के धारक होते हैं। समस्त आगमों, शास्त्रों के रहस्य, मर्म को जानने वाले, सभी तीर्थवासियों को आगम ज्ञान से आत्मज्ञान-आत्मदर्शन करके आत्म चरित्र में ले जाने वाले होते हैं। उत्कृष्ट ज्ञानी, बहुश्रुत होते हैं। साधु-साध्वी भगवंत-पांच महाव्रत, पांच समिति के पालक, ज्ञान सम्पन्न, दर्शन सम्पन्न, चारित्र सम्पन्न, क्षमावंत, वैरागयवंत, भाव सत्य, करण सत्य, योग सत्य से युक्त, मन समाधारणता, वचन समाधारणता, काय समाधारणता, चार कषायों के विजेता, वेदनीय समाधारणता, मारणान्तिक वेदनीय समाधारणता ऐसे सत्ताईस गुणों के धारक होते हैं। ये पांचों परम इष्ट हैं, परम वन्दनीय हैं, परम पूजनीय हैं। इनका नाम लेने से, इनके आत्मिक गुणों का स्मरण करने से, इनकी गुण स्तुति, गुणगान करने से, स्तुतिकार के भी आत्मा के रागादि अवगुण नष्ट होते हैं, आत्मा के गुण प्रकट होते हैं, इसलिए इन्हें मंगलकारी कहा है, पाप का नाश करने वाला कहा है। इन पांचों परमेष्टियों के गुण कुल 108 होते हैं, अतः जब 108 मणकों की माला, इनका स्मरण करते हुए जपते हैं। इनके, सबके मिलाकर कहें तो अनन्त गुण हैं। अनन्त ज्ञान के धारक अरिहंत परमात्मा और सिद्ध परमात्मा हैं। उसी अनन्तता को प्रकट करने वाले शेष तीन पदवीधारी हैं, अतः यह नवकार 14 पूर्वो का सार कहा जाता
SR No.009401
Book TitleJainattva Kya Hai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaymuni
PublisherKalpvruksha
Publication Year2012
Total Pages84
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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