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________________ भामाशाह दृश्य ४ स्थान-कुम्भलमेर का दुर्ग । समय-पूर्वाह्न । [ राणा प्रताप सिंह और भामाशाह ] प्रताप सिंह-अमात्यवर ! आज भी भगवान भास्कर ने अपना प्रताप नहीं त्यागा, लघु नक्षत्रों ने अपनी आभा नहीं त्यागी और अग्नि ने भी अपनी उष्णता का परित्याग नहीं किया। पर जाने क्यों क्षत्रिय आज अपना क्षात्र तेज खोकर निस्तेज हो रहे हैं। ___ भामाशाह-नरेन्द्र ! क्षत्रिय निस्तेज नहीं, जो निस्तेज हैं, वे क्षत्रियेतर हैं । आपके समान वास्तविक क्षत्रिय का तेज आज भी इन्द्रलोक की चर्चा का विषय है। प्रताप सिंह-वस्तुतः पराश्रित नर-कीटों को क्षत्रिय संज्ञा देना 'क्षत्रिय' शब्द की अवमानना है । स्वर्ण-शंखलाकी तृष्णासे श्वान बनने वाले सिंह घृणास्पद हैं। मुझे ऐसे कुलांगारों से कोई सहानुभूति नहीं। ___ भामाशाह-ये पवित्र उद्गार आपके क्षत्रियत्व के अनुरुप ही हैं। यही कारण है जो आपने ऐसे यवन-भक्त नरेशों से अपना सम्बन्धविच्छेद् कर दिया है। __प्रताप सिंह-सम्बन्ध-विच्छेद् तो क्या ? मुझे उनका नामोच्चारण करने पर भी ग्लानि का अनुभव होता है, उनके दर्शनसे ही अपशकुन की कल्पना होती है।
SR No.009392
Book TitleBhamashah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhanyakumar Jain
PublisherJain Pustak Bhavan
Publication Year1956
Total Pages196
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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