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________________ भामाशाह भामाशाह - यह स्वाभाविक है स्वामी! मार्तण्ड विश्व - साम्राज्य त्याग भले ही अस्ताचल में निवास करने लगे, पर कलंकी चन्द्रमासे, मिलना स्वीकार नहीं करता । तेजस्वियों की यही कुल परम्परा है। ( द्वारपाल का प्रवेश ) द्वारपाल -- प्रजापाल ! मानसिंह का दूत द्वार पर उपस्थित है और आपसे मिलने की आज्ञा चाहता है। प्रताप सिंह – जाओ, उसे अविरोध यहां उपस्थित होने दो, किसी → को भी निराश लौटाना मेरे स्वभाव के प्रतिकुल है । ( द्वारपाल का गमन ) प्रताप सिंह - भामाशाह ! इस असमय में मानसिंह के दूत का आगमन मुझे रहस्यमय प्रतीत होता है । भामाशाह - हो सकता है नरेन्द्र | कुटिलजन प्रत्येक कार्य किसी न किसी स्वार्थवश ही करते हैं। प्रताप सिंह पर मुझपे मानसिंह का कौन-सा स्वार्थ सिद्ध हो सकता है ? भामाशाह स्वार्थ क्या ? पावन को भी पतित बनाना पतितों का व्यसन होता है । ( पद ध्वनि सुनकर ) अब दूत का आगमन हो रहा है, अतः सावधानी अपेक्षित है । ( दूत का प्रवेश ) दूत --- ( अभिवादन कर ) मेवाड़पते ! मुझे महाराजा मानसिंह ने आपकी सेवा में भेजा है । - भामाशाह – यह द्वारपाल से विदित हो चुका है, आगमन का प्रयोजन मात्र ज्ञातव्य है । ५७
SR No.009392
Book TitleBhamashah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhanyakumar Jain
PublisherJain Pustak Bhavan
Publication Year1956
Total Pages196
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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