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________________ भामाशाह ताराचन्द्र-तुम्हारा अनुमान सत्य है, वे भगवद्भक्ति और धार्मिक प्रन्थों के अध्ययन में ही अपने अवकाश का समय व्यतीत कर देते हैं। नैनूराम-पर कदाचित आपको इनसे विशेष अभिरुचि नहीं ? ताराचन्द्र-अभी नहीं है, कारण मैं भोग विलास को तारुण्य का और भगवद्भजन को वार्धक्य का कर्तव्य मानता हूं। नैनूराम-आपकी विचारधारा से मैं भी सहमत हूं । मनोरंजन प्रेमी होने से ही आपने यहां आते ही इस प्रकार राजसी जीवन अपनाया है कि यहां के लक्षाधीशों के पुत्र भी चकित हो गये हैं। आपके समान यहां का कोई भी धनी मनोविनोदमें इतना व्यय नहीं करता। केवल आपही छह वेतनभोगी गायिकाएं संगीत सुनानेके लिये नियुक्त किये हैं, अन्य तो एक भी गायिका रखने का साहस नहीं करते। __ ताराचन्द्र-न करें। समस्त वैभव परभव में भी साथ लेते जायें। . पर मेरा सिद्धांत है कि यदि भाग्य से वैभव मिला है, तो स्वयं उसका उपयोग करो और उसके कुछ अंश का उपयोग अन्य को भी करने दो। नैनूराम-धन्य हैं आपके विचार और आपकी उदारता ! ताराचन्द्र-नैनूराम ! वार्तालाप करते करते समय पर्याप्त हो गया, पर गायिकाएं आज अभी तक नहीं आयीं ? नैनूराम-(नेपथ्य में नूपुरोंकी ध्वनि सुनकर ) लीजिये, आपकी इच्छा । होते ही वे आ पहुंची। ( वाद्य-वादकों के साथ गायिकाओं का आगमन ) ५४
SR No.009392
Book TitleBhamashah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhanyakumar Jain
PublisherJain Pustak Bhavan
Publication Year1956
Total Pages196
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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