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भामाशाह
दृश्य ३
स्थान-सादड़ी में ताराचन्द्र का सुसज्जित कक्ष । समय --संध्या। (ताराचन्द्र और नैनूराम )
ताराचन्द्र-नैनूराम ! जिस दिन से मुझे यहाँ स्थायी रूप से रहने की राजाज्ञा मिली है, उसी दिन से मैं अपने हृदय में पूर्ण स्वतंत्रता का अनुभव करने लगा हूं।
नूराम-क्यों स्वामिन् ? क्या वहां उदयपुर में आप पर भी कुछ बन्धन थे।
ताराचन्द्र-बन्धन एक भी नहीं था, पर वहां ज्येष्ठ भ्राता भामाशाह के होने से में इच्छानुसार आनन्द नहीं लूट पाता था।
नेनूराम-क्या आप पर उनका कठोर नियन्त्रण हर समय रहता था ?
नाराचन्द्र-नियन्त्रण तो नहीं था, पर मुझे ही उनके सामने रस राम करने में संकोच होता था।
नैनूराम-क्या उन्हें संगीत आदि के प्रति विशेष आसक्ति नहीं ?
ताराचन्द्र-वस्तुतः उन्हें आसक्ति नहीं है और इसका कारण उनकी गम्भीर प्रकृति है । उन्हें हास्य-विनोद की अपेक्षा कर्तव्य अधिक प्रिय है, ऐसे तो विशुद्ध कलाओं का उन्हें असाधारण बोध है । ........
नूराम-(मध्य में ही ) और उसका उपयोग वे भगवान के कीर्तन आदि में करते होंगे ?