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________________ भामाशाह दृश्य स्थान – नवनिर्मित उदयपुर | ( उदय सागर पर पर्यटन करते हुए उदयसिंह और भारमल ) उदयसिंह — भारमल्ल ! कदाचित आपको ज्ञात न होगा कि यह वही स्थान है जहां चित्तौड़ विजय के पूर्व हमारे पूर्वज बप्पा रावलने अज्ञात वास किया था ? भारमल - ज्ञात है राणा ! पूर्वजों की रक्षाभूमि होने के ही कारण इस स्थान के प्रति आपकी ममता का स्रोत उमड़ पड़ा है । उदयसिंह --वस्तुतः मुझे अरावली की शैल माला से वेष्टित यह स्थान अत्यन्त प्रिय प्रतीत हुआ, तभी तो मैंने इस पर्वतीय उपत्यका के मध्य में उदय - सागर निर्मित कराया । भारमल – उदय सागर के निर्माण से यह स्थान प्रत्येक मेवाड़ के यात्री के लिये दर्शनीय हो गया था और अब गिरिव्रज के शिखर देश में यह नव चौकी भवन बन जाने से इसकी दर्शनीयता अधिक बढ़ गयी है । उदय सिंह - इसके अतिरिक्त इस भवन में चारों ओर निर्मित ये अट्टालिकाएं भी सौन्दर्य में वृद्धि कर रही हैं । अधिकांश नागरिकों ने भी अपने अपने भवन यहीं बना लिये हैं । इस प्रकार यह निर्जन प्रदेश एक सुन्दर नगर के रूप में परिवर्तित हो गया है। भारमल - यह आपकी परिष्कृत रुचि का ही परिणाम है, अन्यथा कौन जानता था कि यह निर्जन प्रांत जनाकीर्ण नगरका रूप ले लेगा ? ४४
SR No.009392
Book TitleBhamashah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhanyakumar Jain
PublisherJain Pustak Bhavan
Publication Year1956
Total Pages196
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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