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भामाशाह ताराचन्द्र--क्या आपको उस कायरसे मिलने में ग्लानि न होगी?
भारमल्ल-इसमें ग्लानि क्या ? हमें कायरता से घणा करनी चाहिये, कायर से नहीं।
ताराचन्द्र-पर इससे भी आदर्शवादिता को आघात ही पहुंचेगा।
भारमल - ताराचन्द्र ! तुममें अभी सांसारिक अनुभव का अभाव है, इसी कारण आदर्शवाद के लोकमें विचरते रहते हो । पर आदर्शों के लोक में विचरण करने वाले प्राणी संसार के लिये विशेष उपयोगी नहीं होते। हमें लोक-नीति और आदर्शवाद का समन्वय करते हुए कार्य करना है। इसीमें हमारा और देश का कल्याण होगा।
भामाशाह-(ताराचन्द्र से) पूज्य श्री के विचार सुलझे हुए हैं, हमें भी उनकी शिक्षा के अनुसार ही जीवन को ध्येय निर्मित करना चाहिये।
भारमल्ल-अब मुझे कल राणा के समीप जाना है । अतः चलकरः आवश्यक सामग्री की व्यवस्था करो।
( सबको गमन)
पटाक्षेप