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भामाशाह
न जय-वधू निराश हो, न व्यर्थ यह प्रयास हो,
उठा स्वहस्त त्राण दो।
जननि ! अशीष दान दो ।। ( गाते हुए प्रस्थान )
पटाक्षेप
दृश्य ८
स्थान-रणथम्भौर का दुर्ग ( भारमल्ल, भामाशाह और ताराचन्द्र )
भारमल्ल-भामा ! देखा, इस बारका राजपूत-यवन-संग्राम ! और देखा राजपूत वीरों का रणप्रेम ! ___ भामाशाह-देखा, हर्ष और विस्मय से पूर्ण दृष्टि से देखा; और देखी बिदनौर के राजा जयमल तथा कैलवाड़े के स्वामी षोडषवर्षीय पत्ते की विस्मयकारिणी वीरता।
ताराचन्द्र-वस्तुतः उन दोनों महावीरों का महोत्सर्ग असाधारण था । वीरता-प्रेमी तरुण युग-युग तक उनके नाम की माला जपेंगे, राजपुत रमणियां सांध्यवर्तिका के समय उनका स्मरणकर सन्तान का मंगल मनायेगी और कुल कामिनियां आटा पीसते समय उनके गौरव गीत गायेंगी।
भारमल्ल-ताराचन्द्र ! तुम्हारी भविष्यवाणी सत्य होकर रहेगी ।