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________________ भामाशाह प्रथम-( हर्षपूर्वक ) वह देखिये, बिजौली के परमार और मादी के झालीपति भी सेना के साथ इधर ही आ रहे हैं। द्वितीय-और उधर झालौरपति शोनमड़ेका राव ईश्वरदास राठौर, कर्मचन्द कछवाहा और ग्वालियर के तुवरराव आदि भी आ पहुंचे। तृतीय-(प्रसन्न होकर ) बस, अब हमारी विजय में सन्देह नहीं, हम प्राणों को करतल पर रख कर यवनों से संग्राम करेंगे। जबतक एक भी राजपूत की देह में प्राण रहेंगे, चित्तौड़ की पवित्र भूमि यवनों के चरण-स्पर्श से कलंकित न होगी। चतुर्थ-आओ, हम सब राष्ट्र-यज्ञ में प्राणों की आहुति देनेके पूर्व अन्तिम बार मातृभूमि की बन्दना कर लें। ( कोष से खड़ग निकाल उच्च स्वर से गान ) जननि ! अशीष दान दो। स्वदेश स्वाभिमान दो॥ अजेयता अखण्ड दो, प्रहार बल प्रचण्ड दो, प्रबुद्ध युद्ध नीति दो, विशुद्ध युद्ध रीति दो, समर कला महान दो। जननि ! अशीष दान दो॥ न एक भी हताश हो, न शौर्य का विनाश हो, ३६
SR No.009392
Book TitleBhamashah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhanyakumar Jain
PublisherJain Pustak Bhavan
Publication Year1956
Total Pages196
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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