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भामाशाह
वास्तव में उक्त दोनों वीरों की उपमा देने योग्य अन्य कोई वीर मुझे इतिहास के अंचल में नहीं मिला ।
भामाशाह-जब है ही नहीं, तो क्या मिले ? पर इसमें सन्देह नहीं कि इनकी कीर्ति का गुरू भार वहन करने में इतिहास को अवश्य कठिनता होगी।
ताराचन्द्र-भ्राता ! आप दार्शनिक-सी चर्चा न कर सरलता अपनायें तो मुझे भी साथ देने में सुगमता होगी। __भारमल्ल -सरल भाषा में हमारा कथन यह है कि सहस्रों राजपूतों का रक्तदान भी विजयलक्ष्मी की प्रसन्नता के लिये पर्याप्त न हुआ। अमरावती-सी चित्तौड़पुरी भूत प्रेतों के ताण्डव नृत्य का स्थान बन गयी । स्वाधीनता और सनातन धर्म का अभेद्य दुर्ग अधर्मियों से छिन्न-भिन्न हो गया। गगनचुम्बी अट्टालिकाओं के शिखर धूल में मिल गये।
भामाशाह-निस्सन्देह वहां की दशा इससे भी अधिक दारूण है । उस निस्सीम दुर्दशा को शब्दों की सीमा में नहीं बांधा जा सकता। ___ ताराचन्द्र-सुनते हैं कि नृशंस अकबर दुर्गद्वार के विशाल पटह, चतुर्भुजा देवी के मन्दिर के बहुमूल्य दीपवृक्ष और सिंहद्वार के दर्शनीय कपाट भी अपने साथ लेता गया है ।
भारमल्लले गया होगा। यहां का वैभव ही इतना लुभावना है कि उसे अपने अधिकार में करने की आकांक्षा सहृदयता और शिल्पानुराग पर भी कुठाराघात कर देती है।
भामाशाह-अकबर की बर्बरतासे विगत-वैभव चित्तौड़ अब जाने