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भामाशाह
ऐसे भयंकर समाचार सुना कर मुझे भयभीत करने का प्रयास मत
करो ।
( गुप्तचर का भय से पलायन )
उदय सिंह - (दीर्घ निःश्वास ले ) अब शिर पर वज्र गिरने में विलम्ब नहीं। संभवतः एक दो दिन में ही यवन सैनिकों की दुनालियों से इस दुर्ग पर गोलियां बरसेंगी। उनकी उस दुर्दमनीय शक्ति के सामने ठहरने की क्षमता मुझमें नहीं । अब आत्म-रक्षा के प्रश्न का कैसे हल हो ? ( कुछ सोच कर ) दुर्ग छोड़ कर भाग जानेके सिवाय कोई रास्ता नहीं । अब मैं इसी उपाय का शरण लूं । अभी रात्रि में ही गुप्त मार्ग से भाग कर चित्तौड़ की सीमा से बाहर पहुंच जाऊं । पर, तस्कर के समान ही औरों की दृष्टि बचा कर यहाँ से भागू, अन्यथा सामन्तों की दृष्टि पड़ जाने पर प्राणों से हाथ धोना पड़ेगा । चलूं अब अन्धकार भी भूपटल पर छा गया है। देर करने से चन्द्रमा की किरणें बाधक होंगी ।
( शीघ्रता से पलायन )
पटाक्षेप
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