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________________ भामाशाह दृश्य ६ स्थान - चित्तौड़ का दुर्ग ( चिन्तित मुद्रा में टहलते हुए एकाकी राणा उदय सिंह ) उदय सिंह—( निश्वास छोड़ते हुए स्वगत ) हा ! यवन नरेश के कारागार की मनोवेदना से अभी मुक्ति भी नहीं मिल पायी कि पुनः यवनवाहिनी मुझे बन्दी बनाने के लिये आ रही है । क्या इस बार भी यवन - सैनिक मेरे हस्तों में लौह श्रृंखलाएं पहिनायेंगे ? नहीं, नहीं, मैं पराधीनता का आलिंगन नहीं करूंगा। नीतिकारों ने भी पराधीन जीवन से मृत्यु को श्रेष्ठतर माना है। पर क्या जीवन इतना व्यर्थ और निस्सार है कि लोकनिन्दा के भय से उसे मृत्यु की भेंट चढ़ा दी जाये ? नहीं, मैं कभी भी अपने जीवन को व्यर्थ युद्ध की ज्वाला में न होगा। पर, अपनी जीवन-रक्षा का उपाय भी मुझे स्वयमेव करना होगा, कारण एक भी राजपूत सामन्त मेरी सहायता करने को प्रस्तुत नहीं । ऐसी दशा में क्षण भर का विलम्ब भी जीवनपर संकट ला सकता है । ( एक गुप्तचर का आगमन ) उदय सिंह - कहो ! क्या समाचार है ? शीघ्र कहो । गुप्तचर - ( अभिवादन कर ) महाराणा ! यवन सम्राट् अकबर चित्तौड़ के निकट पहुंच चुके हैं। उनकी अनीकिनी पण्डौली से वशी जाने वाले राजमार्ग के उपरि भाग में ठहरी है............. । उदय सिंह—( मध्य में ही क्रोधपूर्वक ) जाओ, जाओ, भाग जाओ । ३६
SR No.009392
Book TitleBhamashah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhanyakumar Jain
PublisherJain Pustak Bhavan
Publication Year1956
Total Pages196
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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