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भामाशाह
भामाशाह-अबलाओं-सा ही नहीं, वरन् उनसे भी कई गुना अधिक । देखो, कुलांगना भी नहीं-वारांगना वीरा अपने कौशल से यवनों को परास्त किया और राणा को कारागार से मुक्त करने में सफलता प्राप्त की। पर उस निर्लज्ज कायर को राजसभा में वीरा वारांगना की प्रशंसा करने में भी लज्जा का अनुभव नहीं हुआ।
मनोरमा-यदि उसमें लज्जा ही होती तो वह युद्ध-भूमि में यवनों का बन्दी बनने की अपेक्षा मृत्यु का आलिंगन करना अधिक श्रेष्ठ समझता।
भामाशाह-पर मृत्यु का आलिंगन करने योग्य उसका वक्ष नहीं रह गया । वीरा ने कोमल आलिङ्गनों से उसके वक्षस्थल की दृढ़ता अपहृत कर ली । यही कारण है कि क्रुद्ध राजपूतों ने कुचक्र रच कर उस मायाविनी वीराको परलोकवासिनी बना दिया है।
मनोरमा-(विस्मयसे ) क्या अब वीरा इस लोक में नहाँ ?
भामाशाह-नहीं। सौन्दर्य की प्रतिमा वीरा-राणा को पथभ्रष्ट कराने वाली वीरा की काया सामन्तों की कोपाग्नि में भस्म हो चुकी है। पर राणा की बन्धन-मुक्ति का कारण उसका अनुपम रण-कौशल अवश्य इतिहास की निधि बन गया है।
मनोरमा-अब राणा को वीरा के इस महावियोग से सद्बुद्धि आ गयी होगी? ___ भामाशाह-नहीं, अपने पतन की आधार-शिला के चकनाचूर हो जाने पर भी उनका विवेक नहीं जागा। आज भी वे मन्त्रियों से राजनीति न सीख विलासिता के स्वप्न देखने में मग्न हैं। यह उनकी अयोग्यता की पराकाष्ठा है।