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________________ भामाशाह ___ वीरा-(मध्य में ही ) अर्थात् रणथम्भौर का दुर्गरक्षक शून्य है। इस कार्य के लिये उन्होंने कब तक का अवकाश ग्रहण किया है l उदय सिंह-उन्होंने कल दुर्ग में उपस्थित हो जाने का वचन दिया था और मुझे विश्वास है कि उनकी कर्तव्य-परायणता कल उन्हें रणथम्भौर पहुंचा देगी। वीरा-आपका विश्वास असत्य नहीं हो सकता, उनकी कर्त्तव्यशीलता के विषय में मैंने भी ऐसा ही सुना है और सुनती हूं कि जिस पुत्र का परिणयन करने वे गये हैं वह भी अत्यन्त निपुण और नीतिज्ञ है। उदय सिंह-तुमने सत्य ही सुना है। वस्तुतः इस अल्पवय में भी उसमें असाधारण योग्यता है। उसके विषय में कई घटनाएं अत्यन्त विस्मयकारिणी सुनी गयी हैं। वीरा-दो एक सुनने का अवसर मुझे भी दीजिये। उदय सिंह-अब आज नहीं, अन्य किसी दिन सुनाऊंगा । आज तो जबसे तुमने वह मादक गान सुनाया है, तब से मेरी विचित्र दशा है। वाणी अवश्य तुमसे वार्तालाप कर रही है, पर अन्तरात्मा कल्पना-लोक में रमणीय दृश्य देख रही है । अब कल्पना को अनुभव में परिणित करने की लालसा है। ___ वीरा-यदि आपकी ऐसी मनोकामना है, तो चलिये शयनागार का स्वर्णपर्यंक भी प्रतीक्षा कर रहा होगा। उदय सिंह-चलो हृदयेश्वरी ! ( दोनों का गमन ) पटाक्षेप
SR No.009392
Book TitleBhamashah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhanyakumar Jain
PublisherJain Pustak Bhavan
Publication Year1956
Total Pages196
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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