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भामाशाह
तुम मम अन्तर को छु हंस लो, मैं तब अन्तर को छू हंस लूं ।
तुम मुझको, मैं तुमको कस लूं ॥ तुम निज मन की मुझसे कह लो, मैं निज मन की तुमसे कह लूं । तुम मम यौवन नद् में बह लो, मैं तब यौवन नद में बह लूं ॥
पर तुम मम अभिलाष न मसलो,
औ मैं तब अभिलाष न मसलूं ।
तुम मुझको, मैं तुमको कस लूं ॥ उदय सिंह-साधुवाद ! इस गीत में प्रेममयी भावना का सुन्दर समावेश है । कर्णगत होते ही हृदय प्रेम-सागर में मग्न हो गया ।
वीरा-यह आपका अकारण स्नेहभाव है । कहिये, दुर्गों की व्यवस्था ठीक चल रही है न ?
उदय सिंह-ठीक ही होगी। मैं कभी दुर्गों का निरीक्षण करने नहीं जाता। पर सेवकों के कथनानुसार प्रबन्ध समुचित प्रतीत होता है।
वीरा-जाने की आवश्यकता भी क्या ? आपने प्रत्येक दुर्गपर दुर्गरक्षक नियुक्त कर ही दिये हैं, वे सभी सुरक्षा के विषय में पूर्ण सावधान होंगे। ___ उदय सिंह-सावधान सभी हैं, केवल इस समय रणथम्भौर के दुर्गरक्षक शाह भारमल्ल अपने पुत्र भामा का विवाह करने अलवर गये हैं......