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भामाशाह
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राज्यकार्यों में तल्लीन रहने की सम्मति देने लगे । पर मैं उनके वाग्जालों में नहीं उलझा, अविरत अनुरोध की अवहेलना कर. तुमसे मिलने चला आया ।
वीरा - आपको ऐसा ही व्यवहार शोभा देता है, कारण आप चित्तौड़ के राणा हैं और मंत्री आपके सेवक ! उनका कर्तव्य है कि आपकी आज्ञा को न तु न च किये बिना शिरोधार्य करें । पर यह नहीं कि इसके विपरीत स्वयं आपको आदेश देने के अधिकारी बनें ।
उदय सिंह - चलो, जाने दो, अब यह प्रसंग चला कर समय नष्ट मत करो। इस समय मेरा मनोरंजन करने के लिये कोई एक गीत सुनाओ, जिससे मैं तुम्हारे प्रेमालाप में भाग लेने के योग्य बन सकू । वीरा - ( वीणा उठाते हुए ) जैसा आराध्य देवता का आदेश होगा, यह दासी वैसा ही आचरण करेगी ।
गीत
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तुम मुझको, मैं तुमको कस लूं तुम मम अधरों का रस लूटो, मैं तब अधरों का मधुरस हूं ।
तुम मुझको, मैं तुमको कस लूं । प्रिय ! मम उर में तुम छा जाओ, औछा जाऊ मैं तब उर में । यों तुम मेरी और तुम्हारी - छवि मैं देखूं हृदय मुकुट में ॥
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