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________________ भामाशाह दृश्य ४ स्थान-चित्तौड़ में विलासिनी वीरा का सुसज्जित विलास भवन ( एकाकिनी वीरा ) वीरा-(स्वगत) धन्य हूं मैं,और धन्य है मेरी रूपराशि,जो चित्तौड़ के राणा आज मेरी इच्छाओं के दास बने हैं। उन्हें लक्ष-लक्ष जनता के हित की उतनी चिंता नहीं, जितनी मेरी। नीति-निपुण मंत्रियों के हितकर सम्मति-वचन उतने मान्य नहीं, जितने मेरे अनुचित और अहितकर अनुरोध । दीन प्रजा के विलापों का भी उतना ध्यान नहीं, जिवना मेरी साधारण उदासीनता का। वर्तमान समय में यद्यपि प्रत्येक क्षण राज्य-रक्षा की चिन्ता आवश्यक हो गयी है, पर वे मेरे यहां आनेके नित्य नियम का कभी उल्लंघन नहीं करते। ( द्वार तक जाकर ) पर आज अभी तक दर्शन नहीं दिये, कदाचित् किसी कार्य में व्यस्त हो गये होंगे । ( कुछ रुककर ) यह किसी के आने की पदध्वनि सी आ रही है, सम्भवतः वे ही होंगे। ( उदय सिंह का आगमन ) वीरा-( उठकर ) आइये ! आइये प्राणवल्लभ !! आइये ।।। आज अत्यधिक विलम्ब हो गया । मैं जाने कब से आपकी प्रतीक्षा में व्यग्र हो रही हूं। उदय सिंह- हृदयेश्वरी ! अपने इस विलम्ब का मुझे स्वयं खेद है, पर विवशता थी। आज पुनः मंत्रियों ने मुझे घेर लिया और अपना वही चिरभ्यस्त राग अलापने लगे। तुम्हारी ओर से उदासीन रह
SR No.009392
Book TitleBhamashah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhanyakumar Jain
PublisherJain Pustak Bhavan
Publication Year1956
Total Pages196
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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