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भामाशाह वीरा-आपके इस निर्णय का मैं स्वागत करती हूं। आप राज्यकार्य की ओर से निश्चिन्त रहिये । यदि कभी आपत्ति की मेघमाला 'चित्तौड़-गगन पर मंडरायेगी. तो बरसने के पूर्व ही मैं पवन-रूपिनी बन उसे सीमा से बाहर कर दूंगी। ___ उदयसिंह-वीर हृदये ! तुम्हारे कोमल नारी हृदय में वीरता का यह सद्भाव देख मेरी ममता और भी प्रवल हो रही है । अनंगदेव की कृपा से केवल आज ही नहीं, आजन्म हमारे और तुम्हारे लिये मदन त्रयोदशी रहे। ____वीरा -- ऐसा ही होगा। अनङ्ग देवताका वर-भंडार अपने भक्तोंके लिए सदैव खुला रहता है। अब सूर्यास्त हो चुका है, विहग-मण्डली अपने नीड़ों में विश्राम करने जा चुकी है। चलिये, हम भी राजप्रासाद के शयनागार में उन्मुक्त विहार कर मदन त्रयोदशी सार्थक करें। उदयसिंह-चलो।
( परस्पर कण्ठ में बाहु पाश डाल दोनों का गमन )
पटाक्षेप