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भामाशाह
यहां तक आ पहुंचा हूं और लता - गृह में तुमसे अदृश्य रह तुम्हारी मदन- पूजा देखी है ।
वीरा- आपके इस प्रमाण में भी असत्य झलकता है । निश्चय ही आप राज्य कार्यों से श्रान्त हो संध्याटन करने इधर उद्यान में आये होंगे, और कह रहे हैं कि तुम्हें खोजने आया हूं। यदि मेरा इतना ध्यान आपको होता तो मुझे विरह-वारिधि में छोड़ मन्त्रियों की मन्त्रणा - सरोवरी में मग्न न रहते ।
उदय सिंह - मंत्रियों की मंत्रणा में भाग लेनेसे अपनी उपेक्षा मत समझो | इस समय चित्तौड़ के दुर्ग पर यवन - पताका फहराने की लालसा अकबर के हृदय में उग्र हो रही है। किसी भी क्षण यहां विनाश का अवतरण हो सकता है, इसके पूर्व रक्षा की व्यवस्था का उत्तरदायित्व मुझ पर होने से ही मंत्रियों से मंत्रणा करनी पड़ती है । वीरा - आप व्यर्थ ही इस अनिष्ट की चिन्ता में घुल रहे हैं । भविष्य के भय से वर्तमान के सुख को ठुकराना विवेक नहीं । चित्तौड़ के राणा होकर चिन्ताके अधीन होना कायरता है । अतः निश्चिन्तता पूर्वक आमोद प्रमोद कर यौवन, प्रभुत्व और वैभव का उपयोग कीजिये । मैं अपने सौन्दर्य आदि समस्त नारी-गुणोंसे आपके आमोद की सहायिका बनने को तत्पर हूं ।
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उदयसिंह - निपुणे | तुम्हारी सम्मति मेरी आकांक्षा के अनुरुप ही है । अब मैं कभी मन्त्रियों के बारजाल में उलझ अपने भोगों में बाधा न पहुंचाऊँगा । सारा समय तुम्हारे साथ प्रेम-लीला में ही व्यतीत करूंगा ।
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