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________________ भामाशाह हो जायें। ( थाल को निरावरण करते हुए) और इसी उद्देश्य से मैं श्रीफल के स्थान में अपने गृह का सर्वश्रेष्ठ रत्न दक्षिणावर्त्त शंख लेकर आपकी सेवा में उपस्थित हुआ हूं। भारमल्ल-धन्य है मेरा सौभाग्य जो मेरे पुत्र को आप जैसे धनकुबेर का जामाता बनने का सुयोग अभी से मिल रहा है और धन्य है आपकी उदारता जिसके फलस्वरूप यह दक्षिणावर्त्त शंख-सी महानिधि आज से मेरे गृह की शोभा बन कर रहेगी।' ___ भोमा-यह उदारता नहीं, मेरी स्वार्थपरता का एक उदाहरण है। इतना भाग्यशाली जामाता पाने के लिये यह लघु अर्पण कोई महत्व नहीं रखता। भारमल्ल-आपके लिए भले ही यह त्याग महत्व का न हो पर मेरे लिए यह लाभ जीवन की महत्तम घटना है। इसके प्रभाव से मेरे गृह में अष्टादश कोटि धन हो जायेगा। इतना धन एकत्र देखने का सौभाग्य तो मेरे पूर्वजों को भी नहीं मिला। भोमा -- इस शंख का ऐसा ही माहात्म्य है। अब आप विधिवत अर्चन कीजिये। अभी अष्टादश कोटि धनराशि प्रकट हो जायेगी। ( कुछ रुक कर ) अब मेरे अधिक रुकने से अन्य कार्यों में विलम्ब की सम्भावना है । अतः गमनानुमति की याचना है। भारमल्ल-कैसे दू गमनानुमति ? जिसके संयोग से मुझे ये आह्लाद के क्षण मिले, उसके वियोग को सहने की क्षमता इस हृदय में नहीं। भोमा-काया के क्षणिक वियोग को आप हृदयों का वियोग क्यों ११
SR No.009392
Book TitleBhamashah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhanyakumar Jain
PublisherJain Pustak Bhavan
Publication Year1956
Total Pages196
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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