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भामाशाह
दृश्य ३
स्थान- भारमल्ल कावड़िया का भवन
समय-प्रभात
( गृह के बहिकक्ष में अपनी मित्रमण्डली के साथ भारमल कावड़िया, महार्थ्य वस्त्राच्छादित दक्षिणावर्त्त शंख का स्वर्ण थाल लिये भोमा नाइटा का आगमन, भारमल द्वारा उठ कर स्वागत सत्कार, पारस्परिक स्नेह मिलन पश्चात अपने अपने आसनों पर उपवेशन )
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भारमल—धन्य मेरा भाग्य, जो मेरी कुटिया आपके पदार्पण से पवित्र हुई |
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भोमा- - भाग्य आपका नहीं, मेरा है, जो आपके दर्शन का सुयोग मिला ।
भारमल-कहिये, यहां तक भटकने का श्रम कैसे करना पड़ा ? भोमा- इसमें श्रम क्या ? मेरा स्वार्थ ही आपके दर्शनों का अबसर लाया है ।
भारमल
- आपका स्वार्थ ? नहीं, यह सम्भव नहीं । मेरा सौभाग्य ही आपके आगमन का हेतु हो सकता है । कदाचित् इसी कारण मेरा मन - मधुप आपके मुखारविन्द से आदेश - सौरभ पाने को लालायित है ।
भोमा - आदेश नहीं; निवेदन है । वह यह कि आपके यहां एक भाग्यशाली जीव ने पुत्र रूप में जन्म लिया है और मेरी भार्या की कुक्षि से एक कन्या का जन्म निकट भविष्य में सम्भाव्य है । मेरी कामना है कि आज ही इन दोनों के सम्बन्ध के हेतु हम वचनवद्ध
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