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________________ भामाशाह प्रभात में भारमल्ल का भवन मेरा आवास न बन सका, तो संध्या समय इस सिंहासन को शून्य देखोगे । भोमा- नहीं, ऐसा न होगा मेरे नाथ ! कल मध्याह्न के पूर्व ही भारमल्ल कावड़िया का गृह आपके पदार्पण से पवित्र हो जायेगा । [ नेपथ्य से ] तथास्तु ! भोमा -- प्रिये ! प्रिये !! क्या इतने शीघ्र तुम निद्राधीन हो गयीं ? [ नेपथ्य से ] नहीं, आयी नाथ ! अलका०—( प्रवेश कर ) आज की उस असाधारण घटना का जाने कैसा प्रभाव पड़ा कि अभी तक निद्रा नहीं आ सकी, कदाचित आप भी नहीं सो सके । ( रुक कर ) पर अभी मेरे आने से पूर्व किसके साथ आपका वार्तालाप हो रहा था ? मुझे उसी समय आने की Braण्ठा हुई थी पर वार्तालाप के मध्य में पहुंचना असभ्यता समझ रुक गयी । ( चारों ओर देख कर ) किन्तु यहां तो आपके अतिरिक्त कोई भी दृष्टिगोचर नहीं हो रहा है । फिर इस वार्तालाप का पूरक द्वितीय जन कौन था ? भोमा — इस वार्तालाप के, अभी दो क्षण पूर्व के वार्तालाप के, पूरक थे मेरे आराध्य शंख देवता । आज तक जिनकी समुपस्थिति से इस गृह में आनन्द की वर्षा होती रही, कल प्रभात में वे इस कुटिया को छोड़ देंगे । अलका० -- - क्या आज की उस असाधारण घटना का यही असा - धारण फल है ? क्या शंख देवता अब हमारे यहां वास नहीं कर सकेंगे ? ८
SR No.009392
Book TitleBhamashah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhanyakumar Jain
PublisherJain Pustak Bhavan
Publication Year1956
Total Pages196
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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