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भामाशाह
कभी न तजना देव ! निकेतन । तव चरणों में यही निवेदन ॥
इसे अब कर लो तुम स्वीकार ॥ तु०॥ ( गीत समाप्त होने के पूर्व ही सहसा आरती की दीपशिखासे दुपट्टे का संयोग और दुपट्टे का प्रज्वलन, अलकासुन्दरी का वीणा छोड़ कर अग्नि-शमन ) ___ अलका सुन्दरी-नाथ ! आज यह कैसा अमंगल ? क्या हमारे देवता को अब हमारी पूजा स्वीकार नहीं जो ऐसा अशकुन हो रहा है ? आपके दुपट्टे में अग्नि का संयोग अवश्य ही किसी अनिष्ट का संकेत है। ___ भोमा-प्रिये ! चिन्ता मत करो। हमारे ललाट में जो भी लिपि लिखी होगी, वह सार्थक होकर रहेगी। जाओ, इस दुर्घटना को भूल कर शयन करो, मैं भी इस दुर्घटना को भूल जाने के लिये शयन करता हूं।
( अलकासुन्दरी का गमन और भोमा का चादर से मुखाच्छादन कर पर्यङ्क पर शयन )
[ नेपथ्य से ] भोमा! निद्रामग्न हो क्या ?
भोमा-( अर्द्ध निद्रितावस्था में ) कौन मेरी निद्रा में बाधा देने आया है ?
[ नेपथ्य से ] मैं हूं, तुम्हारा शंख देवता, तुम्हारे गृह से जाने के पूर्व तुम्हें सूचना देने आया हूं। ध्यान से सुनो, तुम्हारी भार्या की कुक्षि में कोई जीव कन्या रूप में आया है और यहीं भारमल्ल कावडिया की भार्या की कुक्षि से एक ऐसे महा भाग्यवान पुत्र ने जन्म लिया है, जिसका महापुण्य मुझे वहाँ जाने को वाध्य कर रहा है।