SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 41
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भामाशाह दृश्य २ स्थान-भोमा नाहटा का शयनागार समय-रात्रि ( एक ओर श्वेत वस्त्राच्छादित मणिमय पर्यंक, अन्य ओर स्वर्णमय सुन्दर चतुष्किका पर रत्न जटित सिंहासन, सिंहासन पर प्रतिष्ठापित दक्षिणावर्त शंख और समीप ही एक बहुमूल्य दीपाधार में प्रदीप्त दीप, आरती का पात्र लिये भोमा नाहटा तथा स्वर्णथाल में जल, चन्दन, अक्षत आदि पूजन-सामग्री लिये उनकी पत्नी अलकासुंदरी का प्रवेश ) भोमा-( दक्षिणावर्त शंख के समक्ष पूजन-सामग्री का थाल रख ) मेरे देवता ! जिस दिन तुम इस दरिद्र की कुटिया में अवतीर्ण हुए, अष्टादश कोटि धनराशि जाने कहाँ से प्रकट हो गयी, जो निरन्तर व्यय करने पर भी अक्षय बनी हुई है। यही कारण है जो मेरी श्रद्धा पूर्णिमा की शशि-कला-सी पूर्णता को प्राप्त हो गयी है। चाहे जैसी स्थिति में होऊँ जब तक तुम्हारा पूजन अर्चन नहीं कर लेता, शय्या पर चरण रखने की इच्छा नहीं होती। लो, नित्यवत् आज भी मेरा अर्चन स्वीकार करो। ( आरती करते हुए गायन और पत्नी का वीणावादन ) - गीत हमारी प्रभुता के आधार । तुम्हारा वन्दन है शत बार ॥ हमारी ।। जिस दिन हुवा तुम्हारा आना। गृह में आयी सम्पत् नाना । भरा निधियों से आगार ।। तुम्हारा० ॥
SR No.009392
Book TitleBhamashah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhanyakumar Jain
PublisherJain Pustak Bhavan
Publication Year1956
Total Pages196
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy