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________________ भामाशाह ज्योतिषी-मिलेगा, अवश्य मिलेगा यह दुर्लभ शंख-रत्न । ज्योतिष का कथन कभी मिथ्या नहीं होता। पर यदि यह कभी अपनी उदारता से सर्वस्व भी दान कर दे तो भी आश्चर्यजनक न होगा। भारमल्ल-इतनी उदारता ! हो, कोई हानि नहीं । उदारता कोई शोचनीय अवगुण नहीं, प्रशंसनीय गुण ही है। ज्योतिषी- अब चलने की आज्ञा दीजिये, अभी दो चार गृहों में और जाना है। भारमल-( सविनय ) अभी दो क्षण और रुकिये, पुत्र का नाम संस्करण क्या हो ? इतना और ज्ञातव्य है । ज्योतिषी-( कुछ सोंचकर ) भामा' अर्थात् स्त्री के निमित्त से इसका भाग्य चमकने वाला है और आप लोग वंश, परम्परा से 'शाह' कहलाते ही हैं । अतः भामाशाह' नाम सार्थक और सुन्दर रहेगा। __ भारमल्ल-( सहास ) साधुवाद महाराज ! साधुवाद !! आपके . मस्तिष्क में भी क्या सुन्दर नाम सूझा । ( ११ स्वर्ण मुद्राएं हाथ में देते हुए ) यह लीजिये अपनी दक्षिणा । आज आपको जो कष्ट दिया, उसके लिये क्षमा कर कृपा-भाव बनाये रखें । ज्योतिषी-( मुद्राएं मुट्ठी में दबा प्रसन्न होकर ) अब आज्ञा दीजिये, जब कभी आवश्यकता पड़े, स्मरण कीजियेगा । ( गमन, पश्चात अन्य अभ्यागतों का मी गमन ) पटाक्षेप
SR No.009392
Book TitleBhamashah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhanyakumar Jain
PublisherJain Pustak Bhavan
Publication Year1956
Total Pages196
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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