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________________ मंथन किस तरह देते और राज-समुद्रादि अनेक बृहत् व्ययसाध्य कार्य किस तरह सम्पन्न होते ? इसलिये भामाशाह ने अपनी तरफ से न देकर भिन्न २ सुरक्षित राजकोषों से रुपया लाकर दिया ।"* इसपर 'त्यागभूमि' के विद्वान् समालोचक श्री हंसजी ने लिखा है: "निस्सन्देह इस युक्ति का उत्तर देनो कठिन है, परन्तु मेवाड़ के महाराणा राणा प्रताप को भी अपने खजाने का ज्ञान न हो यह मानने को स्वभावतः किसी का दिल तैयार न होगा। ऐसा मान लेना महाराणा प्रताप की शासन-कुशलता और साधारण नीतिमत्ता से इन्कार करना है। दूसरा सवाल यह है कि यदि भामाशाह ने अपनी उपाजित सम्पत्ति न देकर केवल राजकोषों की ही सम्पत्ति दी होती, तो उसका और उसके वंश को इतना सम्मान जिसका उल्लेख श्री ओझोजी ने 'उदयपुर राज्य का इतिहास' में पृष्ठ ७८८ पर किया है, हमें सम्भव नहीं दिखता । एक खजांची का यह तो साधारण सा कर्त्तव्य है कि आवश्यकता पड़ने पर कोष से रुपया लाकर दे। केवल इतने मात्र से उसके वंशधरों की यह प्रतिष्ठा ( महाजनों के जाति भोज के अवसर पर पहिले उसको तिलक किया जाना ) यह कुछ बहुत युक्तिसंगत नहीं मालूम होता।" 'त्यागभूमि' के विद्वान् समालोचक श्री हंसजी की उक्ति का समर्थन करते हुए श्री गोयलजी ने भी लिखा है: "इस आलोचना में ओझाजी की युक्ति के विरुद्ध जो कल्पना की गयी है, वह बहुत कुछ ठीक जान पड़ती है। यदि श्री भोझा जी का यह लिखना ठीक मान लिया जाये कि महाराणा कुम्भा और साँगा आदि द्वारा उपार्जित अतुल सम्पत्ति प्रताप के समय तक सुरक्षित थी, वह खर्च नहीं हुई थी तो वह सम्पत्ति चित्तौड़ या उदयपुर के कुछ गुप्त खजानों में सुरक्षित रही होगी। भले ही अकबर को उन खजानों का पता न चल सका हो, पर इन दोनों स्थानों पर अकबर का अधिकार तो पूरा हो गया था और ये स्थान अकबर की फौज से बराबर घिरे * उदयपुर का इतिहास जिल्द १ पृष्ठ ४६३-४६६ । त्यागभूमि वर्ष ३ अंक ४ पृष्ठ ४४५
SR No.009392
Book TitleBhamashah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhanyakumar Jain
PublisherJain Pustak Bhavan
Publication Year1956
Total Pages196
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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