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________________ मंथन पर अकबर का अधिकार हो गया, अखिल मेवाड़ में महाराणा को सुरक्षित रहने के लिये एक भी स्थान न रह गया; दिन में एक बार कन्द मूल का भोजन भी दुर्लभ हो गया, रात्रि में निश्चिन्तता से क्षण भर लेटने के लिये पर्वतों की गुफाएं अप्राप्य हो गयीं, तब उन्होंने शेष जीवन शान्ति से व्यतीत करने के लिये मेवाड़ त्याग अन्यत्र जाने का संकल्प किया। पर भामाशाह से अपने स्वामी महाराणा का यह प्रयाण न देखा गया। उन्होंने अपनी समस्त सम्पत्ति मेवाड़ - उद्धार के लिये महाराणा के चरणों में समर्पित कर दी, इस घटना का उल्लेख टाड राजस्थान में इस प्रकार है 'राणाजी को अपनी जन्मभूमि से बिदा नहीं लेनी पड़ी। अरावली के शिखर से उतर कर वह जन्म भूमि की सीमा पर आये थे कि उनके परम विश्वासपात्र मन्त्री ने असीम धनराशि लेकर राणा जी को समर्पित कर दी । अकेले भामाशाह ने दी इस विपुल धनराशि को उपार्जित नहीं किया था, वरन इनके पूर्व पुरुषों ने जो कि बहुत दिनों से मेवाड़ के मन्त्री होते आये थे, उस धन को इकट्ठा किया था। वह धन इतना था कि जिसकी सहायता से बारह वर्ष तक २५००० पच्चीस हजार सेना का भरन पोषण हो सके। इस महान उपकार को करने के कारण ही भामाशाह मेवाड़ के उद्धारकर्ता कहलाये ।' -- भामाशाह के इस अपूर्व त्याग के सम्बन्ध में हिन्दी के यशस्वी कवि भारतेन्दु हरिश्चन्द्र ने निम्न उद्गार प्रकट किये हैं। 'जा धन हित नारि तजै पति, पूत तजै पितु शीलहि सोई । भाई सों भाई लरै रिपु से पुनि, मित्रता मित्र तजै दुख जोई ॥ ता धन को बनिवाँ ह्वै गिन्यो न, दियो दुख देश के आरत होई । * टाड राजस्थान जिल्द १ पृ० ४०२-४०३ । ट
SR No.009392
Book TitleBhamashah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhanyakumar Jain
PublisherJain Pustak Bhavan
Publication Year1956
Total Pages196
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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