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________________ मंथन महाराणा ने प्रत्येक चक्रव्यूहका भेदन सफलतापूर्वक किया। उसके आदेश से मिर्जा खां का भामाशाह से मिलना और महाराणा को अकबर की राजसभा में ले चलने का आग्रह करना एक ऐसा ही निष्फल चक्रव्यूह था । यदि इस अवसर पर भामाशाह चाहते तो किसी प्रकार अकबर की आकांक्षा की पूर्ति का निमित्त बन कर उससे यथेष्ट धन और विशेष मान प्राप्त कर सकते थे। पर धन्य हैं वे भामाशाह, जिन्होंने स्वामिभक्ति की मान-प्रतिष्ठा रखने के लिये यवन-नरेश द्वारा मिलनेवाली मान-प्रतिष्ठा को ठुकरा दिया । वास्तव में अकबर जैसे दाता के किमिच्छिक दान की उपेक्षा कर देना उनके ही वश का था। वणिक् जाति को लोभी मानने की चिरधारणा को उन्होंने अपने निर्लोभ से मिथ्या प्रमाणित कर दिया। इसी कारण उनका निर्लोभ महाराणा की कृपा से पाणिग्रहण करने में सफल हुआ। ___ भामाशाह की कार्य-पटुता से महाराणा इतने प्रसन्न थे कि वे उन्हें अपना विशेष अंग मानते थे। मेवाड़ के तत्कालीन अनेक कार्यों में भामाशाह का नाम जुड़ा हुआ पाया जाता है । सरस्वती भाग १८ संख्या २ में श्री देवी प्रसाद जी मुंशी का 'महाराणा प्रताप सिंह का ताम्रपत्र' शीर्षक एक लेख प्रकाशित हुआ था। उस लेख में जिस ताम्रपत्र को उल्लेख किया गया है, वह सं० १६३९ का है और उसमें चारण कान्हो को महाराणा प्रताप सिंह द्वारा मृगेषर गांव दिये जाने का उल्लेख है । इसके अन्त में भामाशाह का नाम भी आता है, अतः उसकी नकल नीचे लिखी जाती है:___ 'महारजााधिराज महाराणा श्री प्रतापसिंह जी आदेशात् चारण कान्हा हे गाँव मिरघेसर दत्त पया कीधो, आघाट घे दीघो, सं० १६३६ वर्षे फागुन सुदी ५ हुए श्री मुखवीदमान शाह भामाशाह ।' * उक्त ताम्रपत्र के लेख से यह भी सिद्ध हो जाता है कि इस तामपत्र के बनने के समय भामाशाह उपस्थित थे। यो महाराणा प्रताप सिंह के अभिन्न अंग बनकर भामाशाह ने सदा ही अपना यथेष्ट योगदान दिया। जब यवनों के अविरल आक्रमणों से सभी दुर्गों * वीर शासन १६ दिसम्बर १९५२ ई० पृ. ७ ।
SR No.009392
Book TitleBhamashah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhanyakumar Jain
PublisherJain Pustak Bhavan
Publication Year1956
Total Pages196
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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