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मंथन
उक्त पंक्तियों से ज्ञात होता है कि महाराणा प्रतापसिंह भी भामाशाह और उनके भाई ताराचन्द्र की चिन्ता रखते थे, अन्यथा कौन नरेश अपने एक पदाधि कारी पर संकट सुनकर स्वयं उसकी रक्षा करने के लिये जा सकता है ? वस्तुतः मेवाड़के प्रति भामाशाह और उनके परिवारकी स्वामिभक्ति ही महाराणा की इस दुर्लभ कृपा का कारण रही है। ____ भामाशाहके जीवन का प्रत्येक अंश स्फटिक मणि के समान निर्मल रहा है। उसमें कहीं भी कालिमा की क्षीण रेखा तक नहीं आ पायी, वे सिद्धान्त-रक्षा को सदैव इन्द्र सम्पदा से भी मूल्यवान मानते रहे। उनका मन अपने कर्त्तव्यों पर मेरु पर्वत के समान अटल रहा, प्रलोभनों की आँधियाँ कभी उसे अणु मर भी विचलित नहीं कर सकीं। अपने इस कथन की पुष्टि में में इतिहास की एक घटना उद्धृत कर रहा हूं:
'बादशाहने मिर्जा खाँ को फौज देकर मालवे की तरफ भेजा जिससे भामोशाह जाकर मिला। मिर्जा खाँ ने महाराणाको बादशाह की खिदमतमें ले जाना चाहा, लेकिन भामाशाहने मंजूर न किया ।
इस उल्लेखसे भामाशाहकी कर्त्तव्य-प्रियता का प्रमाण सहज ही मिल जाता है, प्रत्येक इतिहास-प्रेमी को यह ज्ञात है कि यवन सम्राट अकबर महाराणा प्रताप सिंह को अपने अधीन करने के लिये अत्यंत उत्कठिंत रहा है। हम इस उत्कण्ठा को यदि उसके सम्पूर्ण जीवन की महत्तम आकाँक्षां कहें, तो भी कोई अत्युक्ति न होगी। अपनी इसी मनोकामना को मूर्तिमान करने के लिये उसने कितने धनजन का विनाश किया, इस बात की घोषणा इतिहास के पृष्ठ तारस्वर से कर रहे हैं। महाराणा प्रतापसिंह को अपनी राज-सभा में लाने के लिये वह सर्वस्व होमने को भी तत्पर रहा, अपने जीवन का अधिकांश समय भी इसी समस्या का समाधान खोजने में व्यय किया। एक बार नहीं, अनेक बार प्रतापसिंह को अपने जाल में फंसाने के लिये कूटनीति के चक्रव्यूह रचे। पर वीर अभिमन्यु के समान * वीर विनोद पृ० १५८