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________________ मंथन लेकर मालवे में रामपुरे की तरफ चला गया । जहाँके राव दुर्गा ने उसको साथियों समेत बड़ी हिफाजत से रक्खा । यहाँ शाह वाज खाँ ने गोगुंदा वा उदयपुर में शाही फौज के थाने बिठा दिये । इसी सन् या संवत् ( १६३५ , में भामाशोह व उसका भाई २५ लाख रुपये और २०००० अशर्फियां लेकर चूलिया ग्राम में महाराणा प्रतापसिंह के पास पहुंचा और रुपये व अशर्फियाँ नजर की। इस अर्से में (भामाशाहके न रहने पर) रोमा सहाणी प्रधानका कार्य करता था। उस वक्तके किसी शायरने मारवाड़ी जवान में एक दोहा कहा था जो यहाँ लिखा जाता है : भामो परधानो करे, रामो कीधो रद्द ।। धरची बाहर करणनु, मिलियो आय मरद्द ॥ महाराणा प्रतापसिंह ने भामाशाह की बहुत खातिर की और उसके व अपने साथी समेत दीवेर के शाही थाने पर हमला किया ।।" इस हमले का उल्लेख करते हुए श्री ओझाजी ने भी 'उदयपुर राज्य का इतिहास' जिल्द पृ० ४३१ पर लिखा है-"महाराणा भामाशाह की बड़ी खातिर करता था और वह दौवेर शाही थाने पर हमला करने के समय भी राजपूतों के साथ था।"+ 'महराणा ने भामाशाह के भाई ताराचन्द्र को मालवे में रामपुरे की तरफ भेजा था, जिसको शाहबाज खाँ ने जा घेरा और ताराचन्द्र वहां से लड़ाई करता हुवा बसी के नजदीक पहँचा, जहाँ जख्मी हो जाने के सबब घोड़े से गिरा। लेकिन बसीका राव देवड़ा साईदास उस जख्मी को जो बेहोश हो गया था, उठाकर अपने किले में ले आया। शाहबाज खाँ तो दूसरी तरफ रवाना हुवा और यह छल महाराणा प्रतापसिंह ने सुनकर चावण्ड से कूच किया सो दशोर वगैरह में मालवे के शोही थानों को तहस नहस करते और दण्ड लेते हुये चावण्डमें आ पहँचे। नवीर विनोद पृ० १५७-१५८ + रोजपूताने के जैन वीर पृ. ९३ वीर विनोद पृ० १५८
SR No.009392
Book TitleBhamashah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhanyakumar Jain
PublisherJain Pustak Bhavan
Publication Year1956
Total Pages196
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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