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भामाशाह
नैनूराम-स्वामिन् ! यह स्वाभाविक है, षोडषी गायिकाओं की समानता प्रौढ़ाएं नहीं कर सकतीं।
ताराचन्द्र -पर मेरी गान-मण्डली किसी ऐसी सुन्दरी के अभाव में निष्प्राण-सी प्रतीत होती है, यदि कहीं कोई युवती दृष्टि में हो तो सूचित करो। ___ नैनूराम-सुन्दरियों में यहां कीतू की समानता की एक भी नहीं, यद्यपि उसका जन्म एक साधारण कुल में हुआ है। पर उस-सा सौन्दर्य राजाओं के अन्तःपुर में भी दुर्लभ है।
ताराचन्द्र-यदि वह ऐसे सौन्दर्यकी अधिकारिणी है,तो मैं अवश्य उसे अपने यहां लाऊंगा । नैनूराम ! क्या तुम मुझे उसका कोई चित्र आदि दिखा सकते हो ?
नैनूराम-अवश्य, एक दिन वह अकस्मात् ही मेरे नेत्रों के सामने पड़ गयी, मैं उसे देखते ही विस्मय के सागर में मग्न हो गया । गृह पहुंचने पर भी जब उसे नहीं भुला सका, तो उसका एक चित्र भी मैंने बना डाला; जो अभी मेरे पास ही है।
ताराचन्द्र -दिखाओ, कैसा है ?
नैनूराम-(एक चित्र निकाल कर ताराचन्द्र की ओर बढ़ाते हुए) देखिये, मेरा कथन सत्य है या नहीं ?
ताराचन्द्र-वास्तव में तुमने इसके सौन्दर्य के विषय में जो कुछ भी कहा है, वह अक्षरशः सत्य है । अब इस सौन्दर्य की प्रतिमा को पाये बिना मुझे शांति नहीं मिल सकती।
नैनूराम-इतने आतुर मत होइये, मैं आपकी अभिलाषा पूर्ण करने के लिये प्रत्येक यत्न करूंगा।