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भामाशाह ताराचन्द्र-साम, दाम, दण्ड, भेद "जिस उपाय से बने उसे मेरे गृह की शोभा बना दो।
नैनूराम -उस पर अधिकार पाना इतना दुष्कर नहीं, साधारण गृह में उसका जन्म हुआ है । सुन्दर वस्त्रों और बहुमूल्य आभरणोंका प्रलोभन ही उसे खींच लायेगा ।
ताराचन्द्र-जाने क्यों मैं उसे पाने को व्यग्र हूं ? तुम कल संध्या में ही उसे मेरे सामने उपस्थित कर दो। इसमें तुम्हें जितने भी धन की आवश्यकता पड़े, निस्संकोच व्यय करो हमें तो सुन्दरी चाहिये।
नैनूराम-आप निश्चिन्त रहें, ऐसी भोली युवतियों को फसलाना तो मेरे बांये हाथ का खेल है।
ताराचन्द्र-अच्छा, ठीक है । अब रात्रि अधिक हो रही है,मैं शयन करूंगा। तुम कल प्रभात से ही मेरे मनोरथ की सिद्धि में जुट जाना। नैनूराम-ऐसा ही होगा । ( गमन )
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