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________________ भामाशाह दृश्य २ स्थान- मालवा के यवन सैन्य शिविर | समय - सन्ध्या । ( मिर्जा खां और भामाशाह ) मिजी खां - भामाशाह ! आपको ज्ञात ही है कि आज हमारे सम्राट् अकबर की विजय वैजयन्ती सम्पूर्ण आर्यावर्त में फहर रही है और देश के समस्त नरेश नतशिर हो उन्हें अपना अधिपति मानते हैं । भामाशाह - मानते हैं उसी प्रकार जिस प्रकार लघु आभामय नक्षत्र निशाकर को । पर तेजस्वी दिननाथ कभी भी उस कलंकी की अधीनता स्वीकार नहीं करता । मिर्जा खां - पर दिननाथ का यह अभिमान स्थायी नहीं रहता । सन्ध्या समय उसे भी अस्ताचल में मुख छिपाने के लिये बाध्य होना है । पड़ता भामाशाह - पर इससे सूर्य का स्वाभिमान दलित नहीं होता, कोई भी उसे तिरस्कार की दृष्टि से नहीं देख सकता । मिर्जा खाँ—केवल लोक-दृष्टि में स्वाभिमानी बने रहने के लोभ से सपरिवार कष्ट भोगना महाराणा की बुद्धिमत्ता नहीं । भामाशाह – खानखाना ! आप इसे नहीं समझ सकते । रजत - खण्डों पर अपना स्वाभिमान बेंचने वाले सिद्धान्त का मूल्य आँकने में असमर्थ होते हैं । मिर्जा खाँ - मेवाड़ामात्य ! ऐश्वर्य-भोग, मान, प्रतिष्ठा आदि ऐसी १२०
SR No.009392
Book TitleBhamashah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhanyakumar Jain
PublisherJain Pustak Bhavan
Publication Year1956
Total Pages196
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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