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________________ भामाशाह वस्तुएं हैं, जिनके समक्ष अटल से अटल सिद्धान्तवादी भी चञ्चल हो उठते हैं। भाभाशाह-पर हमारे महाराणा ऐसे सिद्धान्तवादियों में से नहीं 'कि प्रतिष्ठा के चमकीले कांचके बदले स्वाभिमान का रत्न बेंच दें। मिर्जा खाँ-( स्मिति पूर्वक ) भले ही रत्न के इस लोभ में जीवन से हाथ धोना पड़े ? __ भामाशाह खानखाना ! मृत्यु के साथ क्रीड़ा करने वाले वीरों का मरण कभी भी नहीं होता। इसके विपरीत मृत्यु से भय खाने वाले कायर प्रतिक्षण मरते रहते हैं। ___ मिर्जा खाँ- यह सब दार्शनिकता है, इसमें यथार्थता अल्प भी नहीं । क्षत्रिय यदि ऐसे उद्गार व्यक्त करें तो उचित भी है; पर वैश्य होकर आपके मुखसे ये विचार शोभा नहीं देते। _ भामाशाह-यवन वीर ! आपको यदि वीर-प्रसविनी मेवाड़-मेदिनी की गोद में जन्म लेने का सुयोग मिला होता; बो आप समझते कि वहां का जलवायु प्रत्येक शिशुमें क्षत्रियत्व की चेतना भरता है । मिर्जा खाँ --मेवाड़ का यह गुणगान रहने दीजिये और मैंने जिस कार्य के लिये आपको कष्ट दिया है, उसे सुनिये । भामाशाह-सुनाइये। मिर्जा खाँ–सम्राट अकबर की हार्दिक अभिलाषा है कि आप महाराणा को उनकी सेवामें लिवा लायें। इस कार्य के लिये वे आपको पर्याप्त धन-धान्य के साथ प्रतिष्ठित पद भी देने के लिये तत्पर हैं। भामाशाह-पर मैं इस प्रलोभन में पड़ स्वामिद्रोह का जघन्य १२१
SR No.009392
Book TitleBhamashah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhanyakumar Jain
PublisherJain Pustak Bhavan
Publication Year1956
Total Pages196
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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