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भामाशाह
अमर सिंह - आते ही होंगे ।
( हस्त में एक पत्र लिये भामाशाह का आगमन )
प्रताप सिंह - आज आपके विलम्बका क्या कोई विशेष कारण है ? भामाशाह—आपका अनुमान सत्य है । विशेष कारण के अभाव में मुझे आपकी सेवा में उपस्थित होने में विलम्ब नहीं होता ।
प्रताप सिंह - वह विशेष कारण क्या है ?
भामाशाह - मैं आपकी सेवा में आने को तत्पर ही हो रहा था,
कि इतने में एक यवन - दूत यह पत्र लेकर द्वार पर आ मिला ।
प्रताप सिंह - यह पत्र किसका है ?
भामाशाह –— यह पत्र अकबर के सेनापति मिर्जा खां का है । प्रताप सिंह - क्या लिखा है ? सुनाइये ।
भामाशाह - ( पत्र खोल कर पढ़ते हुए ) मेवाड़ामात्य भामाशाह !
यवन सम्राट् ने मुझे एक विशाल यवनवाहिनी के साथ मालवा की ओर भेजा है । उनके आदेशानुसार आप यहां आकर शीघ्र ही मुझसे मिलें । आपके अविलम्ब मिलने से आप पर किसी भी प्रकार की आपत्ति नहीं आयेगी । अन्यथा आपके साथ ही महाराणा पर भी विपत्तियों का वज्र शीघ्र ही टूटेगा ।
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- मिर्जा खां यवनन-सेनापति प्रताप सिंह - ( पत्र सुनकर ) भामाशाह ! इस पत्र से प्रतीत होता है कि मेरी स्वाधीनता अकबर की कोपाग्नि को निरन्तर प्रचण्ड कर रही है और वह अपनी सम्पूर्ण शक्तियों के साथ मेरी स्वतन्त्रता अपहरण करने में निरत है ।
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