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अङ्क ६
दृश्य १
स्थान – मेवाड़ का पर्वतीय प्रदेश |
( महाराणा प्रताप सिंह और युवराज अमर सिंह )
प्रताप सिंह - अमर सिंह ! भामाशाह ने मालवा- नरेश से लाकर जो सम्पत्ति भेंट की थी, वह निरन्तर युद्ध-व्यय में समाप्त होती जा रही है । पर यवन -सेना के आक्रमण समाप्त नहीं हो रहे ।
अमर सिंह- यह आपका ही साहस है जो इतनी आपत्तियां सह कर भी सिद्धांत-रक्षा में अटल हैं। पर्वतकी गुहाएं आपके राजभवन, वृक्षों के पल्लव आपके स्वर्णपात्र और कठोर चट्टाने आपकी रत्नशय्या बन रही हैं । इतनी कठोर तपस्या करने पर भी मेवाड़ का उद्धार नहीं हो पा रहा है ।
प्रताप सिंह - क्या किया जाये ? मेरे वश का जो भी है, मैं वह सब करता जा रहा हूं । यत्न करने पर भी यदि सिद्धि नहीं होती, तो इसमें किसे दोष दूं ?
अमर सिंह –— पर इस प्रकार कष्ट सहने से भी मेवाड़ का उद्धार सम्भव नहीं ।
प्रताप सिंह - हो या न हो; पर मैं प्राण रहते अकबर की अधीनता स्वीकार नहीं कर सकता । आज भामाशाह अभी तक नहीं आये ?
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